अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - आपः
छन्दः - स्वराड्विषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
आपो॒ यद्व॒स्तेज॒स्तेन॒ तम॑ते॒जसं॑ कृणुत॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । यत् । व॒: । तेज॑: । तेन॑ । तम् । अ॒ते॒जस॑म् । कृ॒णु॒त॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
आपो यद्वस्तेजस्तेन तमतेजसं कृणुत यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । यत् । व: । तेज: । तेन । तम् । अतेजसम् । कृणुत । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२३.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 23; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
[परमेश्वर तेजःस्वरूप है, वह निज तेज द्वारा आसुर विचारों और कर्मों के तेज को तेजोरहित कर देता है, जिससे आसुर विचार और कर्म व्यक्ति पर निज प्रभाव नहीं कर पाते। यह कथन आध्यात्मिक देवासुर संग्राम की दृष्टि से है।]
टिप्पणी -
[राष्ट्रिय दृष्टि से विचार--- राष्ट्रिय दृष्टि से राष्ट्र के राजा के स्वरूप पर निम्नलिखित श्लोक विशेष प्रकाश डालता है । यथा "सोऽग्निर्भवति वायूश्च सोऽर्कः सोमः स धर्मराट्। स कुबेर: स वरुणः स महेन्द्र: प्रभावतः।।" (सत्यार्थप्रकाश, समुल्लास ६) तथा (मनु० ७।७)। इस श्लोक में राजा को अग्नि, वायु, सूर्य [अर्कः], चन्द्र [सोमः], आपः, [वरुणः] द्वारा कहा है। वरुण है "अपामधिपति:" (अथर्व० ५।२४।४)। यतः आपः का अधिपति है वरुण, इसलिए अधिपति द्वारा आपः का कथन हुआ है। अग्नि से आप: तक का कथन अथर्व० २।१९-२३ में भी हुआ है। अतः मनु० और अथर्व० में दैवतसाम्य है। अथर्व० में जो "योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः" कहा है वह शत्रु राष्ट्र का राजा और वैदिक राष्ट्र का राजा है। इस प्रकार राष्ट्रिय दृष्टि से वास्तविक राष्ट्रिय शत्रुओं को निर्दिष्ट किया है।]