अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 128/ मन्त्र 10
सूक्त -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
परि॑वृ॒क्ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः। अना॑शु॒रश्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑वृ॒क्ता । च॒ । महि॑षी । स्व॒स्त्या॑ । च । यु॒धिंग॒म: ॥ अना॑शु॒र: । च । आया॒मी । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता ॥१२८.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
परिवृक्ता च महिषी स्वस्त्या च युधिंगमः। अनाशुरश्चायामी तोता कल्पेषु संमिता ॥
स्वर रहित पद पाठपरिवृक्ता । च । महिषी । स्वस्त्या । च । युधिंगम: ॥ अनाशुर: । च । आयामी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(परिवृक्ता च) और पति द्वारा त्यागी गई (महिषी) दुराचारिण स्त्री, (च) और (स्वस्त्या) अपना वैयक्तिक कल्याण चाहनेवाला सुस्त (युधिंगमः) योद्धा, (च) और (अनाशुरः) कार्यों को शीघ्र न करनेवाला (आयामी) दीर्घसूत्री भृत्य, (ता उ ता) ये सब (कल्पेषु) कल्प-कल्पान्तरों में (संमिता) एक समान माने गये हैं—अर्थात् त्याज्य हैं।