अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 142/ मन्त्र 6
यन्नू॒नं धी॒भिर॑श्विना पि॒तुर्योना॑ नि॒षीद॑थः। यद्वा॑ सु॒म्नेभि॑रुक्थ्या ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । नू॒नम् । धी॒भि: । अ॒श्वि॒ना॒ । पि॒तु: । योना॑ । नि॒ऽसीद॑थ: ॥ यत् । वा॒ । सु॒म्नेभि॑: । उ॒क्थ्या॒ ॥१४२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्नूनं धीभिरश्विना पितुर्योना निषीदथः। यद्वा सुम्नेभिरुक्थ्या ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । नूनम् । धीभि: । अश्विना । पितु: । योना । निऽसीदथ: ॥ यत् । वा । सुम्नेभि: । उक्थ्या ॥१४२.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 142; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
हे (प्रचेतसा) प्रज्ञासम्पन्न अश्वियो! तुम दोनों, (प्र द्युम्नाय) राष्ट्रसम्बन्धी प्रकृष्ट-अन्न तथा प्रकृष्ट यश के चिन्तन के लिए, (प्र शवसे) प्रकृष्ट-सैनिकादि बल के चिन्तन के लिए, (प्र नृषाह्याय) शत्रुओं के प्रकृष्ट पराभव के चिन्तन के लिए, (प्र दक्षाय) राष्ट्र की प्रगति तथा वृद्धि के चिन्तन के लिए॥ ५॥ (उक्थ्या अश्विना) हे प्रशंसनीय अश्वियो! तुम दोनों, (यत् नूनम्) निश्चयपूर्वक (धीभिः) अपने-अपने निश्चित कर्त्तव्यकर्मों के अनुसार, (यद् वा) तथा (सुम्नेभिः) प्रजाजनों को सुख पहुंचाने की भावनाओं के अनुसार, (पितुः) परमपिता परमेश्वर के (योना=योनौ) सिंहासन पर (निषीदथः) बैठते हो॥ ६॥
टिप्पणी -
[द्युम्नाय=द्युम्नं द्योततेर्यशो वा अन्नं वा (निरु০ ५.१.५)। शवस्=बलम् (निघं০ २.९)। दक्षाय= दक्ष गतिवृद्धयोः। धीभिः=धीः कर्मनाम (निघं০ २.१)। सुम्नेभिः=सुम्नम् सुखनाम (निघं০ ३.६)। पितुर्योना=देखो मन्त्र २०.१४०.२ की टिप्पणी।]