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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 5/ मन्त्र 6
    सूक्त - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५

    शाचि॑गो॒ शाचि॑पूजना॒यं रणा॑य ते सु॒तः। आख॑ण्डल॒ प्र हू॑यसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शाचि॑गो॒ इति॒ शाचि॑ऽगो । शाचि॑ऽपूजन । अ॒यम् । रणा॑य । ते॒ । सु॒त: । आख॑ण्डल । प्र । हू॒य॒से॒ ॥५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शाचिगो शाचिपूजनायं रणाय ते सुतः। आखण्डल प्र हूयसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शाचिगो इति शाचिऽगो । शाचिऽपूजन । अयम् । रणाय । ते । सुत: । आखण्डल । प्र । हूयसे ॥५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (शाचिगो) हे अभिव्यक्त वेदवाणी के स्वामी! (शाचिपूजन) हे प्रज्ञा वाणियों और कर्मों द्वारा पूजनीय! (अयम्) यह भक्तिरस (ते) आपकी (रणाय) प्रसन्नता के लिए (सुतः) निष्पन्न हुआ है। (आखण्डल) हे पापपुञ्ज को पूर्णतया खण्डित करनेवाले! (प्रहूयसे) श्रद्धापूर्वक आप बुलाए जा रहे हैं।

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