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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 5/ मन्त्र 3
    सूक्त - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५

    इन्द्र॒ प्रेहि॑ पु॒रस्त्वं विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा। वृ॒त्राणि॑ वृत्रहं जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । प्र । इ॒हि॒ । पु॒र: । त्वम् । विश्व॑स्य । ईशा॑न: । ओज॑सा ॥ वृ॒त्राणि॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न्। ज॒हि॒ ॥५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र प्रेहि पुरस्त्वं विश्वस्येशान ओजसा। वृत्राणि वृत्रहं जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । प्र । इहि । पुर: । त्वम् । विश्वस्य । ईशान: । ओजसा ॥ वृत्राणि । वृत्रऽहन्। जहि ॥५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (प्रेहि) हमारे हृदयों में शीघ्र आइए, (पुरः) हमें दर्शन दीजिए। आप (ओजसा) दूसरों को नम्र कर देनेवाले निज पराक्रम द्वारा (विश्वस्य) ब्रह्माण्ड के (ईशानः) अधीश्वर हैं। (वृत्रहन्) हे राग-द्वेष काम-क्रोध आदि वृत्रों के हनन करनेवाले! आप (वृत्राणि) हमारे समग्र वृत्रों का (जहि) हनन कीजिए।

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