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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 99

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 99/ मन्त्र 1
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९९

    अ॒भि त्वा॑ पू॒र्वपी॑तय॒ इन्द्र॒ स्तोमे॑भिरा॒यवः॑। स॑मीची॒नास॑ ऋ॒भवः॒ सम॑स्वरन्रु॒द्रा गृ॑णन्त॒ पूर्व्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । पू॒र्वऽपी॑तये । इन्द्र॑ । स्तोमे॑भि: । आ॒यव॑: ॥ स॒म्ऽई॒ची॒नास॑: । ऋ॒भव॑: । सम् । अ॒स्व॒र॒न् । रु॒द्रा: । गृ॒ण॒न्त॒ । पूर्व्य॑म् ॥९९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा पूर्वपीतय इन्द्र स्तोमेभिरायवः। समीचीनास ऋभवः समस्वरन्रुद्रा गृणन्त पूर्व्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । पूर्वऽपीतये । इन्द्र । स्तोमेभि: । आयव: ॥ सम्ऽईचीनास: । ऋभव: । सम् । अस्वरन् । रुद्रा: । गृणन्त । पूर्व्यम् ॥९९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 99; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (पूर्वपीतये) भक्तिरस के या आनन्दरस के प्राथमिक पान के लिए, (आयवः) उपासक-जन (स्तोमेभिः) सामगानों द्वारा (त्वा) आपकी (अभि) प्रत्यक्षरूप में (गृणन्त) स्तुतियाँ करते हैं; (समीचीनासः) सम्यक्रूप से शिल्प-कार्यों का सम्पादन करनेवाले (ऋभवः) दिव्य कारीगर (सम्) मिलकर (पूर्व्यम्) आप अनादि देव का (अस्वरन्) स्वरपूर्वक गान करते हैं। (रुद्राः) शत्रुओं को रुलानेवाले क्षत्रिय अनादि देव आपका स्वरपूर्वक गान करते हैं।

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