अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
सूक्त - वामदेवः
देवता - द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - दुःखनाशन सूक्त
क॒र्शफ॑स्य विश॒फस्य॒ द्यौः पि॒ता पृ॑थि॒वी मा॒ता। यथा॑भिच॒क्र दे॒वास्तथाप॑ कृणुता॒ पुनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक॒र्शफ॑स्य । वि॒ऽश॒फस्य॑ । द्यौ: । पि॒ता । पृ॒थि॒वी । मा॒ता ।यथा॑ । अ॒भि॒ऽच॒क्र । दे॒वा॒: । तथा॑ । अप॑ । कृ॒णु॒त॒ । पुन॑: ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कर्शफस्य विशफस्य द्यौः पिता पृथिवी माता। यथाभिचक्र देवास्तथाप कृणुता पुनः ॥
स्वर रहित पद पाठकर्शफस्य । विऽशफस्य । द्यौ: । पिता । पृथिवी । माता ।यथा । अभिऽचक्र । देवा: । तथा । अप । कृणुत । पुन: ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(कर्शफस्य१)= करशफस्य [सायण] शफ अर्थात खुरों द्वारा काम करनेवाले या खुररूपी "कर" अर्थात् हाथोंवाले का, (विशफस्य) तथा शफों से बिहीन का (पिता द्यौः) पिता है द्युलोक, (माता) तथा माता है (पृथिवी) पथिवी। (देवा:) द्यौः और पूथिवी आदि दिव्यतत्त्वों ने (यथा) जिस प्रकार (अभि चक्रे) हमारे संमुख यह सृष्टि पैदा की है, (तथा) उसी प्रकार (पुनः) फिर (अपकृणुत) तुम इस सृष्टि को अपकृत अर्थात् अपगत करो।
टिप्पणी -
[प्राणी-सृष्टि दो प्रकार की है, खुरोंवाली तथा खुरों से रहित। दोनों प्रकार की सृष्टियाँ द्यूलोक तथा पुथिबी से उत्पन्न हुई हैं। जैसे ये उत्पन्न हुई हैं वैसे फिर अपगत होकर उत्पन्न होती रहेंगी। यह उत्पत्ति तथा प्रलय का चक्र अनादिकाल से चल रहा है।] [१. करोति कर्माणि शफैः यः, सः कर्शफः, अश्वादिः। तथा शफैः विहीन: विशफ: मनुष्यादिः।]