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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    सूक्त - वामदेवः देवता - द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दुःखनाशन सूक्त

    अ॑श्रे॒ष्माणो॑ अधारय॒न्तथा॒ तन्मनु॑ना कृ॒तम्। कृ॒णोमि॒ वध्रि॒ विष्क॑न्धं मुष्काब॒र्हो गवा॑मिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्रे॒ष्माण॑: । अ॒धा॒र॒य॒न् । तथा॑ । तत् । मनु॑ना । कृ॒तम् । कृ॒णोमि॑ । वध्रि॑ । विऽस्क॑न्धम् । मु॒ष्क॒ऽआ॒ब॒र्ह: । गवा॑म्ऽइव ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्रेष्माणो अधारयन्तथा तन्मनुना कृतम्। कृणोमि वध्रि विष्कन्धं मुष्काबर्हो गवामिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्रेष्माण: । अधारयन् । तथा । तत् । मनुना । कृतम् । कृणोमि । वध्रि । विऽस्कन्धम् । मुष्कऽआबर्ह: । गवाम्ऽइव ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 9; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (अश्रेष्मान:) न दुग्ध हुए तत्वों ने (अधारयन्) हमारा धारण-पोषण किया हुआ है, (तथा) उस प्रकार का (तत्) वह विधान (मनुना) मनस्वी परमेश्वर ने (कृतम्) किया है। (मुष्काबर्ह:) मुष्कों अर्थात् अण्डकोषों का हनन (इव गवाम्) जैसे बैलों का किया जाता है, वैसे (वध्रि) बधिया तथा (विष्कन्धम्) अवशोषण (कृणोमि) मैं कर देता हूँ [जगत् का]। बर्ह= हिंसायाम् (भ्वादिः)

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