अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
यदि॑ द्विवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । द्वि॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि द्विवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । द्विऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(यदि द्विवृषः असि) यदि तेरी २ इन्द्रियाँ तुझपर निजविषयों की वर्षा करती हैं, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।