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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त

    यदि॑ त्रिवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । त्रि॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि त्रिवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । त्रिऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (यदि त्रिवृषः असि) यदि तेरी ३ इन्द्रियाँ तुझपर निजविषयों की वर्षा करती हैं, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।

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