अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः
छन्दः - पुरस्कृतित्रिष्टुब्बृहतीगर्भा पञ्चपदातिजगती
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
उदायु॒रुद्बल॒मुत्कृ॒तमुत्कृ॒त्यामुन्म॑नी॒षामुदि॑न्द्रि॒यम्। आयु॑ष्कृ॒दायु॑ष्पत्नी॒ स्वधा॑वन्तौ गो॒पा मे॑ स्तं गोपा॒यतं॑ मा। आ॒त्म॒सदौ॑ मे स्तं॒ मा मा॑ हिंसिष्टम् ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । आयु॑: । उत् । बल॑म् । उत् । कृ॒तम् ।उत् । कृ॒त्याम् । उत् ।म॒नी॒षाम् । उत् । इ॒न्द्रि॒यम् । आयु॑:ऽकृत् । आयु॑ष्पत्नी॒त्यायु॑:ऽपत्नी । स्वधा॑ऽवन्तौ । गो॒पा । मे॒ । रत॒म् । गो॒पा॒यत॑म् । मा॒ । आ॒त्म॒ऽसदौ॑ । मे॒ । स्त॒म् । मा । मा॒ । हिं॒सि॒ष्ट॒म् ॥९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
उदायुरुद्बलमुत्कृतमुत्कृत्यामुन्मनीषामुदिन्द्रियम्। आयुष्कृदायुष्पत्नी स्वधावन्तौ गोपा मे स्तं गोपायतं मा। आत्मसदौ मे स्तं मा मा हिंसिष्टम् ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । आयु: । उत् । बलम् । उत् । कृतम् ।उत् । कृत्याम् । उत् ।मनीषाम् । उत् । इन्द्रियम् । आयु:ऽकृत् । आयुष्पत्नीत्यायु:ऽपत्नी । स्वधाऽवन्तौ । गोपा । मे । रतम् । गोपायतम् । मा । आत्मऽसदौ । मे । स्तम् । मा । मा । हिंसिष्टम् ॥९.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(उत् आयुः) वायु को मैंने उत्कृष्ट कर लिया है, (उत् वलम्) बल को उत्कृष्ट कर लिया है, (उत् कृतम्) किये कर्मों को उत्कृष्ट कर लिया है, (उत् कृत्याम्) भावी कर्तव्यकर्मों को उत्कृष्ट कर लिया है, (उत् मनीषाम् ) बुद्धि को उत्कृष्ट कर लिया है, (उत् इन्द्रियम् ) इन्द्रियसमूह को उत्कृष्ट कर लिया है। (आयुष्कृत्) हे आयु अर्थात् जीवन का निर्माण करनेवाले द्युलोक ! तथा (आयुष्पत्नी) पत्नी की तरह आयु=जीवन प्रदान करनेवाली पृथिवी ! (स्वधावन्तौ) तुम दोनों अन्नवाले हो, (मे) मेरे लिए (गोपा=गोपौ) रक्षक (स्तम्) होओ, (मा) मुझे (गोपायतम्) सुरक्षित करो, (मे ) मेरी (आत्मसदौ) आत्मा में स्थित हो जाओ, ( मा) मुझे ( मा) न (हिंसिष्टम) हिंसित करो।
टिप्पणी -
[मन्त्र में यह अभिप्राय है कि जिस व्यक्ति ने निजकाय को विश्व-कायरूप समझ लिया है और निज आयु और बल आदि को उत्कृष्ट कर लिया है, वह निज रक्षा के लिए अपने-आपको द्युलोक और पृथिवी के प्रति सुपुर्द कर देता है, और निजरक्षा की चिन्ता से उपरत हो जाता है, वह समझ लेता है कि जैसे अन्य प्राणियों की रक्षा स्वभावतः द्युलोक और पृथिवी में हो रही है वैसे मेरी भी रक्षा होती रहेगी। स्वधा अन्ननाम (निघं० २।७)। आयुष्कृत् = द्युलोक। छुलोकस्थ आदित्य के उदयास्त द्वारा वर्ष का निर्माण होता है, और वर्षों द्वारा आयुष्काल का निर्माण। स्वधावन्तौ, गोपौ, आत्मसदौ- इन पदों में एकशेष समझना चाहिए। पुल्लिङ्ग पदों और स्त्रीलिङ्गी पदों में पुल्लिङ्ग पदों का एकशेष हुआ है, यथा "माता च पिता च"= पितरौ। आयुष्पल्नी =जैसे पत्नी पति की आयु अर्थात जीवन को बढ़ाती है अन्तादि द्वारा, वैसे पृथिवी अन्न और पेय आदि प्रदान द्वारा हम सबकी आयु को, जीवन को, बढ़ाती है।