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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 139

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 139/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सौभाग्यवर्धन सूक्त

    शुष्य॑तु॒ मयि॑ ते॒ हृद॑य॒मथो॑ शुष्यत्वा॒स्यम्। अथो॒ नि शु॑ष्य॒ मां कामे॒नाथो॒ शुष्का॑स्या चर ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुष्य॑तु । मयि॑ । ते॒ । हृद॑यम् । अथो॒ इति॑ । शु॒ष्य॒तु॒ । आ॒स्य᳡म् । अथो॒ इति॑ । नि । शु॒ष्य॒ । माम् । कामे॑न । अथो॒ इति॑ । शुष्क॑ऽआस्या । च॒र॒ ॥१३९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुष्यतु मयि ते हृदयमथो शुष्यत्वास्यम्। अथो नि शुष्य मां कामेनाथो शुष्कास्या चर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुष्यतु । मयि । ते । हृदयम् । अथो इति । शुष्यतु । आस्यम् । अथो इति । नि । शुष्य । माम् । कामेन । अथो इति । शुष्कऽआस्या । चर ॥१३९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 139; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (मयि) मेरे सम्बन्ध में भी (ते) तेरा (हृदयम, शुष्यतु) हृदय प्रेमरस की दृष्टि से सूख जाय (अथो) तथा (आस्यम्) मुख भी (शुष्यतु) रसीली बातें करने की दृष्टि से सुख जाय। (अथो) और (कामेन) कामवासना की दृष्टि से (माम्) मुझको (निशुष्य१) नितरां सूखा कर, (अथो) तदनन्तर (शुष्कास्या) रसीली बातों से रहित हुई (चर) गृहकार्यों में तू विचर।

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