Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
सूक्त - बभ्रुपिङ्गल
देवता - बलासः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - बलासनाशन सूक्त
अ॑स्थिस्रं॒सं प॑रुस्रं॒समास्थि॑तं हृदयाम॒यम्। ब॒लासं॒ सर्वं॑ नाशयाङ्गे॒ष्ठा यश्च॒ पर्व॑सु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्थि॒ऽस्रं॒सम् । प॒रु॒:ऽस्रं॒सम् । आऽस्थि॑तम् । हृ॒द॒य॒ऽआ॒म॒यम् । ब॒लास॑म् । सर्व॑म् । ना॒श॒य॒ । अ॒ङ्गे॒ऽस्था: । य: । च॒ । पर्व॑ऽसु ॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्थिस्रंसं परुस्रंसमास्थितं हृदयामयम्। बलासं सर्वं नाशयाङ्गेष्ठा यश्च पर्वसु ॥
स्वर रहित पद पाठअस्थिऽस्रंसम् । परु:ऽस्रंसम् । आऽस्थितम् । हृदयऽआमयम् । बलासम् । सर्वम् । नाशय । अङ्गेऽस्था: । य: । च । पर्वऽसु ॥१४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
[हे वैद्य] (अस्थिस्रंसम्) हड्डी को स्वस्थान से च्युत कर देने वाले, (परुस्रंसम) जोड़ों को ढीला कर देने वाले, (सर्वम् ) सब (बलासम् ) बलास रोग को, तथा (आस्थितम्) स्थिर हुए (हृदयामयम्) हृद्रोग को (नाशय) नष्ट कर, तथा (य:) जो (अङ्गेष्ठाः) शरीर के किसी अंग में स्थित (च) और (पर्वसु) जोड़ों में रोग है [उसे नष्ट कर]
टिप्पणी -
[बलास =रोग जो कि शारीरिक वल को नष्ट कर देता है, "बल+असू क्षेपणे" (दिवादिः)। बलासः कासश्वासात्मकश्लेष्मरोगः (सायण)। मन्त्र में नाना रोगों का वर्णन हुआ है। यथा चोट के कारण अस्थि और परु का स्वस्थान से च्युत हो जाना, स्रं सु अवस्रं सने (भ्वादिः ), अवस्रं सनम् =Dropping, or falling down, fall (आप्टे); (२) हृदयामया; (३) बलास= श्लेष्मरोग या क्षय; (४) अंगेष्ठा:=Rheumation (वात पीढ़ा); (५) पर्वसु= जोड़ों का दर्द, Arthritis (gout, गठिया)]।