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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - मृत्युः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मृत्युञ्जय सूक्त
नम॑स्ते यातु॒धाने॑भ्यो॒ नम॑स्ते भेष॒जेभ्यः॑। नम॑स्ते मृत्यो॒ मूले॑भ्यो ब्राह्म॒णेभ्य॑ इ॒दं नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । या॒तु॒ऽधाने॑भ्य: । नम॑: । ते॒ । भे॒ष॒जेभ्य॑: । नम॑: । ते॒ । मृ॒त्यो॒ इति॑ । मूले॑भ्य: । ब्रा॒ह्म॒णेभ्य॑: । इ॒दम् । नम॑: ॥१३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते यातुधानेभ्यो नमस्ते भेषजेभ्यः। नमस्ते मृत्यो मूलेभ्यो ब्राह्मणेभ्य इदं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । यातुऽधानेभ्य: । नम: । ते । भेषजेभ्य: । नम: । ते । मृत्यो इति । मूलेभ्य: । ब्राह्मणेभ्य: । इदम् । नम: ॥१३.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते) तेरे (यातुधानेभ्यः) यातुधानों के लिये (नमः) नमस्कार हो, (ते) तेरे (भेषजेभ्यः) भेषजों के लिये (नमः) नमस्कार हो। (ते) तेरे (मूलेभ्यः) मूलों के लिये (नमः ) नमस्कार हो, तथा (ब्राह्मणेभ्यः) ब्रह्मवेत्ताओं के लिये (इदम्, नमः) यह नमस्कार हो।
टिप्पणी -
[सूक्त में यतः युद्ध का वर्णन है, और युद्ध में मूत्युएं अवश्यम्भावी हैं, अतः मृत्यु का सम्बन्ध युद्ध में दर्शाया है। 'यातुधानेभ्यः" का अर्थ मन्त्र में "यातनाओं के निधान" अर्थ नहीं, अपितु युद्ध में सेवा के लिये, जाने आने वाले सेवकों का वर्णन है । यातु =जाने-आने वाले, धान= धारण पोषण करने वाले। इस अर्थ में यातु पद =यातवः के लिये, अथर्ववेद में प्रयुक्त हुआ है (काण्ड १३। अनुवाक ४। मन्त्र ६ (२७)। "भेषजेभ्य:" = रक्षाकरेभ्यः (सायण), अर्थात् युद्ध में घायल हुओं की सेवा ओषधियों द्वारा करने वाले, अर्थात् Redcross society वालों के लिये, मूलेभ्यः१ =पुरुषजाति के मूलभूत बच्चों के लिये "ब्राह्मणेभ्यः" ब्रह्मवेत्ताओं और वेदवेत्ताओं के लिये। इन चार प्रकार के पुरुषों पर वज्प्रहार युद्ध में न होना चाहिये, ये चारों रक्षा के योग्य हैं। इस सिद्धान्त को नमः अर्थात् नमस्कार द्वारा कथित किया है। यही तभी सम्भव है जब कि इन चारों को युद्धकारी सैनिक विभाग में भर्ती न किया जाय। ब्राह्मणेभ्यः= ब्रह्मवेत्ता मनुष्य युद्धकाल में भी नमस्कार के योग्य हैं, चाहे वे शत्रु के राज्य मैं भी रहते हों, उन पर प्रहार न होना चाहिये।] [१. मूलबलभूतेभ्य: पुरुषेभ्यः (सायण)।]