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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - मृत्युः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मृत्युञ्जय सूक्त
नम॑स्ते अधिवा॒काय॑ परावा॒काय॑ ते॒ नमः॑। सु॑म॒त्यै मृ॑त्यो ते॒ नमो॑ दुर्म॒त्यै त॑ इ॒दं नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । अ॒धि॒ऽवा॒काय॑ । प॒रा॒ऽवा॒काय॑ । ते॒ । नम॑: । सु॒ऽम॒त्यै । मृ॒त्यो॒ इति॑ । ते॒ । नम॑: । दु॒:ऽम॒त्यै । ते॒ । इ॒दम्। नम॑: ॥१३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते अधिवाकाय परावाकाय ते नमः। सुमत्यै मृत्यो ते नमो दुर्मत्यै त इदं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । अधिऽवाकाय । पराऽवाकाय । ते । नम: । सुऽमत्यै । मृत्यो इति । ते । नम: । दु:ऽमत्यै । ते । इदम्। नम: ॥१३.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(मृत्यो) हे [युद्ध में होने वाली] मृत्यु ! (ते) तेरे [ स्वरूप के] (अधिवाकाय) अधिकृत वक्ता के लिये ( नम: ) नमस्कार हो, (ते ) तेरे (परावाकाय) पराविद्या के वक्ता के लिये ( नमः ) नमस्कार हो । ( ते) तेरे (सुमत्यै) सुमति वाले दूत के लिये (नमः) नमस्कार हो, ( ते) तेरे (दुर्मत्यै) दुर्मति वाले दूत के लिये ( इदम् ) यह ( नम: ) नमस्कार हो ।
टिप्पणी -
[सायण के अनुसार मन्त्र में "दूतों" का वर्णन है (१३।२)। 'अधिवाक' तो युद्ध न चाहने वाले राष्ट्र का दूत है, जो कि युद्धेच्छु परराष्ट्र में निज दूतावास का अधिकृताधिकारी है, और "परावाक" है युद्धेच्छु पर-राष्ट्र का दूत, जो कि पराविद्या का जानने वाला शान्तिप्रिय राष्ट्र में निज दूतावास का अधिकृताधिकारी है। युद्धकाल में भी इन दूतों पर प्रहार न करना चाहिये, युद्धकाल में भी ये नमस्कार के योग्य हैं, आदर और सम्मान के योग्य हैं। मन्त्र के इस पूर्वार्ध में पुरुष-दूतों का वर्णन हुआ है। मन्त्र के उत्तरार्ध में स्त्रीदूतों का कथन हुआ है। जो स्त्रीदूत शान्तिप्रिय राष्ट्र का है उसे सुमति वाला कहा है, और जो स्त्रीदूत युद्धेच्छु राष्ट्र का है उसे दुर्मतिरूप कहा है। आप्टे कोश में अधिवचनम् का अर्थ है Advocacy । एतदनुसार अधिवाक का अर्थ होगा "Advocate" की योग्यता वाला अधिवक्ता। दूतावासों में दूत Advocates की योग्यता वाले होने चाहिए, यह अभिप्राय है। Ad(अधि) +vocate (वक्ता) ] ।