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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 13/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - मृत्युः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मृत्युञ्जय सूक्त
नमो॑ देवव॒धेभ्यो॒ नमो॑ राजव॒धेभ्यः॑। अथो॒ ये विश्या॑नां व॒धास्तेभ्यो॑ मृत्यो॒ नमो॑ऽस्तु ते ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । दे॒व॒ऽव॒धेभ्य॑: । नम॑: । रा॒ज॒ऽव॒धेभ्य॑: । अथो॒ इति॑ । ये । विश्या॑नाम् । व॒धा: । तेभ्य॑: । मृ॒त्यो॒ इति॑ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । ते॒ ॥१३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो देववधेभ्यो नमो राजवधेभ्यः। अथो ये विश्यानां वधास्तेभ्यो मृत्यो नमोऽस्तु ते ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । देवऽवधेभ्य: । नम: । राजऽवधेभ्य: । अथो इति । ये । विश्यानाम् । वधा: । तेभ्य: । मृत्यो इति । नम: । अस्तु । ते ॥१३.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(देववधेभ्यः) [शत्रु के ] सैनिकों के वधों के लिये (नमः) वज्रायुध हो, (राजवधेभ्यः) उनके राजाओं के वधों के लिये (नमः) वज्रायुध हो। (अथो) तथा (विश्यानाम् ) वैश्यों के (ये वधाः) जो वध हैं ( तेभ्य: ) उन के लिये (मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते ) वे जो कि तेरे हैं, ( नम:) वज्रायुध (अस्तु) हो।
टिप्पणी -
[मन्त्र युद्ध सम्बन्धी है, यथा "जयकामः स्वसेनां परितः प्रतिदिशम् उपस्थान कुर्यात्", "नमो देववधेभ्यः इत्युपतिष्ठते" (कौशिक सूत्र १४।२५), तथा (सायण) । अतः जय-युद्ध में परकीय सेनाओं उनके राजाओं तथा वैश्यों के वध के लिये वज्रायुध आवश्यक हैं, "नमः वज्रनाम" (निघं० २।२०)। युद्ध में जिनका वध अवश्यंभावी है उन्हें मृत्यु का सम्बन्धी कहा है। "देव" हैं विजिगीषा की भावना वाले परराष्ट्र सैनिक, यथा "दिवू क्रीडाविजिगीषा" आदि (दिवादिः)। युद्ध में सैनिकों, राजवर्ग, तथा वैश्यवर्ग आदि का वध होता ही है, अतः इनका कथन हुआ है]।