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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 141

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 141/ मन्त्र 2
    सूक्त - विश्वामित्र देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गोकर्णलक्ष्यकरण सूक्त

    लोहि॑तेन॒ स्वधि॑तिना मिथु॒नं कर्ण॑योः कृधि। अक॑र्तामश्विना॒ लक्ष्म॒ तद॑स्तु प्र॒जया॑ ब॒हु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लोहि॑तेन । स्वऽधि॑तिना । मि॒थु॒नम् । कर्ण॑यो: । कृ॒धि॒ । अक॑र्ताम्‌ । अ॒श्विना॑ । लक्ष्म॑ । तत् । अ॒स्तु॒ । प्र॒ऽजया॑ । ब॒हु ॥१४१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लोहितेन स्वधितिना मिथुनं कर्णयोः कृधि। अकर्तामश्विना लक्ष्म तदस्तु प्रजया बहु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    लोहितेन । स्वऽधितिना । मिथुनम् । कर्णयो: । कृधि । अकर्ताम्‌ । अश्विना । लक्ष्म । तत् । अस्तु । प्रऽजया । बहु ॥१४१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 141; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    [हे वैद्य !] (लोहितेन स्वधितिना) सुवर्ण के, लोहे के, या लाल ताम्बे के शस्त्र द्वारा (कर्णयोः) दोनों कानों का (मिथुनम्) वेध (कृधि) कर। (लक्ष्य) कर्ण वेध चिह्न को (अश्विना) देवों के दो भिषक् (अकर्ताम्) निजनिरीक्षण में करें। (तद्) वह वेध चिह्न (प्रजया) प्रजा की बहुत्व सख्या द्वारा (बहु) बहुसंख्यक हो।

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