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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - गर्भदृंहणम्, पृथिवी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदृंहण सूक्त
यथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही भू॒तानां॒ गर्भ॑माद॒धे। ए॒वा ते॑ ध्रियतां॒ गर्भो॒ अनु॒ सूतुं॒ सवि॑तवे ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । इ॒यम् । पृ॒थि॒वी । म॒ही । भू॒ताना॑म्। गर्भ॑म् । आ॒ऽद॒धे ।ए॒व । ते॒ । ध्रि॒य॒ता॒म् । गर्भ॑: । अनु॑ । सूतु॑म् । सवि॑तवे ॥१७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यथेयं पृथिवी मही भूतानां गर्भमादधे। एवा ते ध्रियतां गर्भो अनु सूतुं सवितवे ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । इयम् । पृथिवी । मही । भूतानाम्। गर्भम् । आऽदधे ।एव । ते । ध्रियताम् । गर्भ: । अनु । सूतुम् । सवितवे ॥१७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(यथा, इयम्, मही पृथिवी) जैसे यह महती या महिमा वाली पृथिवी (भूतानाम्) भूतों की उत्पत्ति के लिये (गर्भ आदधे) गर्भाधान करती है, (एव) इसी प्रकार [हे पत्नी] (ते) तेरा (गर्भः) गर्भ ( ध्रियताम्) धृत हो, स्थित हो, (अनुसूतुम्) उत्पत्ति विधि के अनुसार (सवितवे) पैदा होने के लिये।
टिप्पणी -
["भूत" शब्द के दो अर्थ हैं, भूत अर्थात् प्राणी, जैसे पञ्च महायज्ञों में "भूतयज्ञः" तथा पञ्च महाभूतों में "भूत" शब्द। पृथिवी जब सूर्य से फेट कर अलग हुई तव इस पर कोई प्राणी तथा कालान्तर में प्राणी पृथिवी के गर्भ से ही पैदा हुए। इसी प्रकार पृथिवी सम्बन्धी पञ्च महाभूत भी पृथिवी के गर्भ से पैदा हुए। पार्थिव पदार्थ अप [जल], तेज [पार्थिवाग्नि], तथा वायुमण्डल भी पृथिवी से ही पैदा हुए]।