Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 20/ मन्त्र 2
सूक्त - भृग्वङ्गिरा
देवता - यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - ककुम्मती प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - यक्ष्मानाशन सूक्त
नमो॑ रु॒द्राय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॒ नमो॒ राज्ञे॒ वरु॑णाय॒ त्विषी॑मते। नमो॑ दि॒वे नमः॑ पृथि॒व्यै नम॒ ओष॑धीभ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । रु॒द्राय॑ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । त॒क्मने॑ । नम॑: । राज्ञे॑ । वरु॑णाय । त्विषि॑ऽमते । नम॑: । दि॒वे । नम॑: । पृ॒थि॒व्यै । नम॑: । ओष॑धीभ्य: ॥२०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो रुद्राय नमो अस्तु तक्मने नमो राज्ञे वरुणाय त्विषीमते। नमो दिवे नमः पृथिव्यै नम ओषधीभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । रुद्राय । नम: । अस्तु । तक्मने । नम: । राज्ञे । वरुणाय । त्विषिऽमते । नम: । दिवे । नम: । पृथिव्यै । नम: । ओषधीभ्य: ॥२०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(रुद्राय) पाप के फलरूप में रुलाने वाले परमेश्वर के लिये ( नम: ) नमस्कार हो, (तक्मने) जीवन को कष्टमय करने वाले ज्वर के लिये (नमः) पथ्यान्न तथा औषध रूपी वज्र (अस्तु) हो, (त्विषीमते) विद्युत् की दीप्तिवाले, (राज्ञे) राजा ( वरुणाय) मेघ के लिये ( नम: ) अन्नाहुतियां हों, (दिवे) द्युलोक के लिये ( नमः ) अन्नाहुतियां हों, (पृथिव्यै) पृथिवी की शुद्धि के लिये ( नम: ) अन्नाहुतियां हों, (ओषधीभ्यः) ओषधियों से (नमः) अन्न की प्राप्ति हो ।
टिप्पणी -
[मन्त्र में "नमः पर्यन्त" प्रत्येक वाक्य है जो कि स्वतन्त्र अर्थ का ज्ञापक है। प्रत्येक वाक्य अन्य वाक्य के साथ सामान्य "नमः" पद द्वारा सम्बद्ध है। अतः प्रत्येक वाक्य का अर्थ बुद्धिग्राह्य किया है। "नमः" का अर्थ अन्न भी है (निघं २।७)। अन्न का अभिप्राय केवल प्रापी द्वारा खाद्य अन्न ही नहीं अपितु यज्ञाग्नि द्वारा खाद्य अन्न भी है, अतः इस अन्न को हम यज्ञिय-सामग्री भी कह सकते हैं जो कि ओषधियों से प्राप्त होती है। वरुण का अर्थ मेघ किया है, जो कि अन्नाभाव से उत्पन्न कष्ट का वारण करता है, अतः यह सब प्राणियों का राजा है। इस में दीप्ति है मेषीय विद्युत् । वरुण है मेघ, एतदर्थ देखो निरुक्त (१०।१।५) में वरुण पद की व्याख्या१]। [१. व्याख्या के लिये निरुक्तकार ने "नीचीनवारं वरुण:" मन्त्र (ऋ० ५।८५।३) उपस्थित किया है जिस में वृष्टि का भी वर्णन है, और वरुण को राजा भी कहा है। साथ ही वरुण अन्तरिक्षस्थानी देवता भी है]