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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
उ॑द॒प्रुतो॑ म॒रुत॒स्ताँ इ॑यर्त वृ॒ष्टिर्या विश्वा॑ नि॒वत॑स्पृ॒णाति॑। एजा॑ति॒ ग्लहा॑ क॒न्ये॑व तु॒न्नैरुं॑ तुन्दा॒ना पत्ये॑व जा॒या ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒द॒ऽप्रुत॑: । म॒रुत॑: । तान् । इ॒य॒र्त॒ । वृ॒ष्टि: । या । विश्वा॑: । नि॒ऽवत॑: । पृ॒णाति॑ । एजा॑ति । ग्लहा॑ । क॒न्या᳡ऽइव । तु॒न्ना । एरु॑म्। तु॒न्दा॒ना । पत्या॑ऽइव । जा॒या ॥२२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उदप्रुतो मरुतस्ताँ इयर्त वृष्टिर्या विश्वा निवतस्पृणाति। एजाति ग्लहा कन्येव तुन्नैरुं तुन्दाना पत्येव जाया ॥
स्वर रहित पद पाठउदऽप्रुत: । मरुत: । तान् । इयर्त । वृष्टि: । या । विश्वा: । निऽवत: । पृणाति । एजाति । ग्लहा । कन्याऽइव । तुन्ना । एरुम्। तुन्दाना । पत्याऽइव । जाया ॥२२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(उदप्रुतः) उदक से आप्लुत अर्थात् भरी हुई (मरुतः) हे मानसून वायुओ ! (ता=ताम्) उसे (इयर्त) प्रेरित करो ( या वृष्टिः) जो वृष्टि कि (विश्वाः निवतः) सब निम्नगामिनी नदियों को (पृणाति) पूरित कर दे। और जो (ग्लहा) मानसून द्वारा गृहीत की गई, न बरसाई गयी वृष्टि (एजाति) किसानों को कम्पा देती है तथा (इव) जैसे (तुन्ना) व्यथित हुई (कन्या) कन्या, तथा (इव) जैसे (पत्या) पति द्वारा (तुन्ना) व्यथित हुई (जाया) पतिसम्भुक्ता पत्नी (एरुम्) प्रेषक पिता को (तुन्दाना) व्यथित करती हुई होती है।
टिप्पणी -
[इयर्त= ऋ गतौ, लोट्, जुहोत्यादित्वात् शपः श्लु:, "अर्तिपिपर्त्योश्च" (अष्टा० ७।४।७७) द्वारा अभ्यास को इकार। ग्लहा = गृह ग्रहणे। ग्लह च (भ्वादिः)। मानसून द्वारा गृहीत हुई वृष्टि। एरुम् = ईर् (गतौ, चुरादिः)+ उ (औणादिक १।७।२१), णिजर्थ अन्तर्भावित= गमन कराने वाला, निजकन्या को वैवाहिक विधिपूर्वक, पतिगृह में भेजनेवाला पिता। कन्या तथा जाया= इस सम्बन्ध में मनूक्त श्लोक स्मरणीय है। यथा– सा चेदक्षतयोनिः स्याद् गतप्रत्यागतापि वा। वैवाहिकेन विधिना पुनः संस्कारमर्हती॥ सा पुत्री-कन्या यदि अक्षतयोनि हो, या पतिगृह जा कर वापिस आ गई हो, तो विवाह की विधि से वह "पुनः" विवाहसंस्कार के योग्य होती है। "पुनः" शब्द द्वारा सूचित होता है अक्षतयोनि का तथा गत प्रत्यागता [क्षतयोनि] का पहिले विवाह हो चुका है। मन्त्रगत "तुन्ना" पद यह दर्शाता है कि अक्षत योनि का कन्यात्व अर्थात् कुमारीपन पूर्ववत् यथावस्थित है, परन्तु पतिगृह द्वारा व्यथित हुई वह पितृगृह में आ गई है। इसी प्रकार जाया भी पति द्वारा "तुन्ना" होकर पितृगृह लौट आई है। इस द्वारा पिता तो व्यथित होगा ही, (तुन्दाना)। पति द्वारा जाया के धकेले जाने का वर्णन अथर्ववेद में अन्यत्र भी हुआ है। यथा "जाया पत्या नुत्तेव कर्तारं बन्ध्वच्छतु" (१०।१।३)]