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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
हि॒मव॑तः॒ प्र स्र॑वन्ति॒ सिन्धौ॑ समह सङ्ग॒मः। आपो॑ ह॒ मह्यं॒ तद्दे॒वीर्दद॑न्हृ॒द्द्योत॑भेष॒जम् ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒मऽव॑त: । प्र । स्र॒व॒न्ति॒ । सिन्धौ॑ । स॒म॒ह॒ । स॒म्ऽग॒म: । आप॑: । ह॒ । मह्य॑म्। तत्। दे॒वी: । दद॑न् । हृ॒द्द्यो॒त॒ऽभे॒ष॒जम् ॥२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
हिमवतः प्र स्रवन्ति सिन्धौ समह सङ्गमः। आपो ह मह्यं तद्देवीर्ददन्हृद्द्योतभेषजम् ॥
स्वर रहित पद पाठहिमऽवत: । प्र । स्रवन्ति । सिन्धौ । समह । सम्ऽगम: । आप: । ह । मह्यम्। तत्। देवी: । ददन् । हृद्द्योतऽभेषजम् ॥२४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(हिमवतः) हिम वाले पर्वत से (प्र स्रवन्ति) प्रवाहित होती हैं, (सिन्धौ) समुद्र में (समह) आदर पूर्वक या सोत्सव अर्थात् हर्ष पूर्वक (संगमः) उन का संगम होता है, ऐसे (आप:) जल या जलवाली नदियां, (देवी:) जो कि दिव्यगुणों वाली हैं, ( मह्यम् ) मुझे (हृद् द्योत भेषजम् ) हृदय की दाह की ओषधि (ददन्) देती हैं।
टिप्पणी -
[हिमवाले पर्वत से प्रवाहित होती हुई नदियां दिव्य अर्थात् स्वच्छ जल वाली होती हैं, उन में बैठकर जलचिकित्सा द्वारा हृदयरोग शान्त होते हैं। मन्त्र ३ में सिन्धु को पति और नदियों को पत्नी कहा है पति-पत्नी का संगम सादर, हर्षपूर्वक होता ही है]।