अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
हि॒मव॑तः॒ प्र स्र॑वन्ति॒ सिन्धौ॑ समह सङ्ग॒मः। आपो॑ ह॒ मह्यं॒ तद्दे॒वीर्दद॑न्हृ॒द्द्योत॑भेष॒जम् ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒मऽव॑त: । प्र । स्र॒व॒न्ति॒ । सिन्धौ॑ । स॒म॒ह॒ । स॒म्ऽग॒म: । आप॑: । ह॒ । मह्य॑म्। तत्। दे॒वी: । दद॑न् । हृ॒द्द्यो॒त॒ऽभे॒ष॒जम् ॥२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
हिमवतः प्र स्रवन्ति सिन्धौ समह सङ्गमः। आपो ह मह्यं तद्देवीर्ददन्हृद्द्योतभेषजम् ॥
स्वर रहित पद पाठहिमऽवत: । प्र । स्रवन्ति । सिन्धौ । समह । सम्ऽगम: । आप: । ह । मह्यम्। तत्। देवी: । ददन् । हृद्द्योतऽभेषजम् ॥२४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ईश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(आपः) व्यापक शक्तियाँ [वा जलधारायें] (हिमवतः) वृद्धिशील वा गतिशील परमेश्वर से [वा हिमवाले पहाड़ से] (प्रस्रवन्ति) बहती रहती हैं, और (समह) हे महिमा के साथ वर्तमान पुरुष ! (सिन्धौ) बहनेवाले संसार [वा समुद्र] में (सङ्गमः) उनका सङ्गम है। (देवीः) वे दिव्य गुणवाली शक्तियाँ [वा जलधारायें] (ह) निश्चय करके (मह्यम्) मेरे लिये (तत्) वह (हृद्द्योतभेषजम्) हृदय की चमक का भय जीतनेवाला औषध (ददन्) देवें ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपकार शक्तियों को विचार कर अपने दोष मिटावें, अथवा जल द्वारा रोगनाश करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(हिमवतः) अ० ५।४।२। हि गतौ वृद्धौ च−मक्। गतिशीलाद् वृद्धिशीलाच्च परमेश्वरात् हिमयुक्तात् पर्वतात् (प्र) प्रकर्षेण (स्रवन्ति) वहन्ति (सिन्धौ) अ० ४।३।१। स्यन्दनशीले संसारे सागरे वा (समह) अ० ५।४।१०। हे महेन महिम्ना सह वर्तमान (संगमः) संसर्गः (आपः) अ० १।४।३। व्यापिकाः परमेश्वरशक्तयो जलधारा वा (ह) अवश्यम् (मह्यम्) उपासकाय (तत्) प्रसिद्धम् (देवीः) देव्यः। दिव्याः (ददन्) लेटि रूपम्। ददतु (हृद्द्योतभेषजम्) हृदयदाहनिवर्तकमौषधम् ॥
विषय
समुद्रजल हृदद्योतभेषजम्
पदार्थ
१. (आप:) = जल (हिमवतः प्रस्त्रवन्ति) = हिमाच्छादित पर्वतों से बहते हैं और (अह) = निश्चय से (सिन्धौ) = समुद्र में (सङ्गमः) = इनका एकत्र मेल होता है। ये विविध पर्वतों से बहनेवाले जल जब समुद्र में एकत्र होते हैं तब उनमें कितनी ही औषधों के गुण आ जाते हैं। २. अत: (तत्) = ये (देवी: आपः) = दिव्य गुणयुक्त जल (ह) = निश्चय से (मह्यम्) = मेरे लिए (हृद्योतभेषजम् ददन्)-हृदय के जलन की औषध दें। इन जलों के प्रयोग से हृदय की जलन शान्त हो।
भावार्थ
हिमाच्छादित पर्वतों से बहकर समुद्र में एकत्र होनेवाले जल हदय की जलन को शान्त करने के सर्वोत्तम औषध हैं।
भाषार्थ
(हिमवतः) हिम वाले पर्वत से (प्र स्रवन्ति) प्रवाहित होती हैं, (सिन्धौ) समुद्र में (समह) आदर पूर्वक या सोत्सव अर्थात् हर्ष पूर्वक (संगमः) उन का संगम होता है, ऐसे (आप:) जल या जलवाली नदियां, (देवी:) जो कि दिव्यगुणों वाली हैं, ( मह्यम् ) मुझे (हृद् द्योत भेषजम् ) हृदय की दाह की ओषधि (ददन्) देती हैं।
टिप्पणी
[हिमवाले पर्वत से प्रवाहित होती हुई नदियां दिव्य अर्थात् स्वच्छ जल वाली होती हैं, उन में बैठकर जलचिकित्सा द्वारा हृदयरोग शान्त होते हैं। मन्त्र ३ में सिन्धु को पति और नदियों को पत्नी कहा है पति-पत्नी का संगम सादर, हर्षपूर्वक होता ही है]।
विषय
हृदय रोग पर जल चिकित्सा।
भावार्थ
(हिमवतः) हिमवाले पर्वतों से जो जलधाराएं (प्रस्रवन्ति) बह कर आती हैं उनका (सिन्धौ) बहनेवाले बड़े प्रवाहों में (समह) एक ही साथ (संगमः) मेल हो जाता है। (तद्) तब (देवीः) दिव्य गुणों से युक्त (आपः) वे जल (मह्यं) मुझे (हृद्योत भेषजं ददन) हृदय की पीड़ा के रोग को अच्छा करने का लाभ देती हैं। अर्थात् हिमवाले पर्वतों से बहती हुई जलधाराओं में उनमें नाना प्रकार के गुणों के एकत्र मिल जाने से हृदय के रोग को नाश करने का विशेष गुण होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। आपो देवताः। १-३ अनुष्टुभ्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apah, the Flow
Meaning
The streams flow from the highest celestial home of snow. O glorious spirit, their end of the flow is in the bottomless sea. May those streams of the divine flow give me the balm for peace of the heart’s agitation.
Subject
Apah- Waters
Translation
They steam out from the snowy mountain, and meet the ocean some where. May those divine waters give me the remedy for burnings in heart.
Translation
The currents of water stream from hills covered with snow and meet in the river or sea together. These pure waters certainly provide me with the medicine curing the pain of heart.
Translation
Waters flow from the snowy mountains, and simultaneously meet in in the ocean. May these efficacious waters serve me as a medicine that heals the heart's disease.
Footnote
Waters that flow from snowy mountains are pure, a and having passed through various regions are mixed with minerals, and thus serve as a medicine for the heart's disease.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(हिमवतः) अ० ५।४।२। हि गतौ वृद्धौ च−मक्। गतिशीलाद् वृद्धिशीलाच्च परमेश्वरात् हिमयुक्तात् पर्वतात् (प्र) प्रकर्षेण (स्रवन्ति) वहन्ति (सिन्धौ) अ० ४।३।१। स्यन्दनशीले संसारे सागरे वा (समह) अ० ५।४।१०। हे महेन महिम्ना सह वर्तमान (संगमः) संसर्गः (आपः) अ० १।४।३। व्यापिकाः परमेश्वरशक्तयो जलधारा वा (ह) अवश्यम् (मह्यम्) उपासकाय (तत्) प्रसिद्धम् (देवीः) देव्यः। दिव्याः (ददन्) लेटि रूपम्। ददतु (हृद्द्योतभेषजम्) हृदयदाहनिवर्तकमौषधम् ॥
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