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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 72

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 72/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाङ्गिरा देवता - शेपोऽर्कः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वाजीकरण सूक्त

    यथा॒ पस॑स्तायाद॒रं वाते॑न स्थूल॒भं कृ॒तम्। याव॑त्पर॒स्वतः॒ पस॒स्ताव॑त्ते वर्धतां॒ पसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ ।पस॑: । ता॒या॒द॒रम् । वाते॑न । स्थू॒ल॒भम् । कृ॒तम् । याव॑त् । पर॑स्वत: । पस॑: । ताव॑त् । ते॒ । व॒र्ध॒ता॒म् । पस॑: ॥७२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा पसस्तायादरं वातेन स्थूलभं कृतम्। यावत्परस्वतः पसस्तावत्ते वर्धतां पसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा ।पस: । तायादरम् । वातेन । स्थूलभम् । कृतम् । यावत् । परस्वत: । पस: । तावत् । ते । वर्धताम् । पस: ॥७२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 72; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    [हे राजन्!] (यथा) जिस प्रकार कि (पसः) राष्ट्र (अरम्) पर्याप्त (तायात्) विस्तार को प्राप्त हो, [जैसे कि] (वातेन) वात द्वारा [पेट] (स्थूलभम्) स्थूलनिभ (कृतम्) कर दिया जाता है (परस्वतः) पूर्व सृष्टिकाल के चक्रवर्ती राजा का (यावत्) जितना बड़ा (पसः) राष्ट्र था (तावत्) उतना बड़ा (ते) तेरा (पसः) राष्ट्र (वर्धताम्) बढ़े।

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