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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 80

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - अरिष्टक्षयण सूक्त

    अ॒न्तरि॑क्षेण पतति॒ विश्वा॑ भू॒ताव॒चाक॑शत्। शुनो॑ दि॒व्यस्य॒ यन्मह॒स्तेना॑ ते ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्तरि॑क्षेण । प॒त॒ति॒ । विश्वा॑। भू॒ता । अ॒व॒ऽचाक॑शत् । शुन॑: । दि॒व्यस्य॑ । यत् । मह॑: । तेन॑ । ते॒ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥८०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्तरिक्षेण पतति विश्वा भूतावचाकशत्। शुनो दिव्यस्य यन्महस्तेना ते हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्तरिक्षेण । पतति । विश्वा। भूता । अवऽचाकशत् । शुन: । दिव्यस्य । यत् । मह: । तेन । ते । हविषा । विधेम ॥८०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 80; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (अन्तरिक्षेण) अन्तरिक्ष के मार्ग द्वारा (पतति) उड़ता है, (विश्वा भूता= विश्वानि भूतानि) सब भूत-भौतिक तत्वों का (अव) जो कि नोचे हैं उन्हें (चाकशत्) वेखता है, उस (दिव्यस्य) द्युलोकस्थ (शुनः) श्वा का (यत्) जो (महः) तेज है (तेन हविषा) उस हविः द्वारा (ते) तेरी (विधेम) परिचर्या हम करते हैं।

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