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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 82/ मन्त्र 2
येन॑ सू॒र्यां सा॑वि॒त्रीम॒श्विनो॒हतुः॑ प॒था। तेन॒ माम॑ब्रवी॒द्भगो॑ जा॒यामा व॑हता॒दिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । सू॒र्याम् । सा॒वि॒त्रीम् । अ॒श्विना॑ । ऊ॒हतु॑: । प॒था । तेन॑ । माम् । अ॒ब्र॒वी॒त् । भग॑: । जा॒याम् । आ । व॒ह॒ता॒त् । इति॑ ॥८२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
येन सूर्यां सावित्रीमश्विनोहतुः पथा। तेन मामब्रवीद्भगो जायामा वहतादिति ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । सूर्याम् । सावित्रीम् । अश्विना । ऊहतु: । पथा । तेन । माम् । अब्रवीत् । भग: । जायाम् । आ । वहतात् । इति ॥८२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 82; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(येन पथा) जिस मार्ग अर्थात् विधि द्वारा (अश्विना) घुड़सवार माता-पिता ने [पुत्र के लिये] (सावित्रीम्) जीवित पिता की पुत्री (सूर्याम्) सूर्या-स्नातिका को (ऊहतुः) [पुत्र के घर] प्राप्त किया, (तेन) उस मार्ग अर्थात् विधि द्वारा (भगः) ऐश्वर्यशाली इन्द्र (मन्त्र १) अर्थात् सम्राट् ने (माम्) मुझे (अब्रव्रीत्) कहा है कि (जायाम्) पत्नी का (आ वहतात्) तू आवहन कर (इति) यह।
टिप्पणी -
[सावित्री =जन्मदाता पिता को पुत्री, अर्थात् जीवित पिता की पुत्री। वेद ने जैसे अभ्रातिका भगिनी के विवाहसम्बन्ध को नियन्त्रित किया है [निरुक्त अ० २। पाद १1 खंड १-६] वेसे जीवित-पितृका-पुत्री के विवाह को भी नियन्त्रित किया है (अथर्व० काण्ड १४, सूक्त १।२)। इस १४ वें काण्ड में विवाह की विधि भी निर्दिष्ट की है। जैसे आदित्य-स्नातक का विवाह सर्वोत्कृष्ट है वैसे सूर्या-स्नातिका का विवाह भी सर्वोत्कृष्ट है। आदित्य-स्नातक के विवाह के लिये सूर्या-स्नातिका सुयोग्या है। अश्विनौ = अश्व+इनिः (अत इनिठनौ, अष्टा० ५।२।१२५), अर्थात् घुड़सवार माता-पिता, वर के]।