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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 86/ मन्त्र 3
स॒म्राड॒स्यसु॑राणां क॒कुन्म॑नु॒ष्याणाम्। दे॒वाना॑मर्ध॒भाग॑सि॒ त्वमे॑कवृ॒षो भ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽराट् । अ॒सि॒ । असु॑राणाम् । क॒कुत् । म॒नुष्या᳡णाम् । दे॒वाना॑म्। अ॒र्ध॒ऽभाक् । अ॒सि॒ । त्वम् । ए॒क॒ऽवृ॒ष: । भ॒व॒ ॥८६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सम्राडस्यसुराणां ककुन्मनुष्याणाम्। देवानामर्धभागसि त्वमेकवृषो भव ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽराट् । असि । असुराणाम् । ककुत् । मनुष्याणाम् । देवानाम्। अर्धऽभाक् । असि । त्वम् । एकऽवृष: । भव ॥८६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 86; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(असुराणाम्) असुरों का (सम्राट असि) सम्राट् तू है, (मनुष्याणाम्) मनुष्यों में (ककुद्) सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ है। (देवानाम्) देवों का (अर्धभाग् असि) अर्धभागी है, (त्वम्, एकवृषो भव) पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[सम्राट् असुरों का भी सम्राट् है और मनुष्यों का भी। असुरों, मनुष्यों के संयुक्त साम्राज्य का वह सम्राट् है। बृहदारण्योपनिषद् के अनुसार प्रजापति के तीन पुत्र है देव, मनुष्य और असुर। और तीनों ही मिल कर प्रजापति के आश्रम में ब्रह्मचारी रहे और विद्याध्ययन करते रहे (अध्याय ५। आह्मण २)। अत: इन तीनों का संयुक्त साम्राज्य भी सम्भव है और एक सम्राट् भी। अतः देव, असुर ओर मनुष्य गुणकर्मकृत है। जातिपरक नहीं। देवानाम्, अर्धभाग्= इस के नाना अथ हैं। (१) देवकोटि१ के ऋषि-मुनियों के आसन में एकासन के अर्धभाग का अधिकारी। (२) 'देवानाम्' के दो अभिप्राय हैं, विजिगीषु सैनिक, तथा व्यवहारी अर्थात् व्यापारी। 'दिवु क्रीडाविजिगीषाव्यवहार' आदि (दिवादिः)। विजिगीषु सेना को देवसेना अथवा देवानां सेना कहा भी है। यथा देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम्' (यजु० १७।४०)। ये देवसेनाएं शत्रुसेनाओं को परास्त कर जब उन्हें 'नैर्हस्तम्' (अथर्व० ६ ६५।२,३) कर दें, तो युद्धस्थल में शत्रुसेनाओं को जो सम्पत्ति उपलब्ध हो, उस को आधी सम्पत्ति सम्राट् की, और शेष आधो सैनिकों की हो। इसी प्रकार व्यापारियों को व्यापार में जो लाभ हो उस का आधा-आधा सम्राट् और व्यापारियों का हो। यह आधा हिस्सा 'राजकर' अर्थात् टैक्स रूप में है। व्यापारियों के लाभ को 'उत्थितम्' कहा है, और मूलधन को 'चरितम्'२ (अथर्व० ३।१५।४)]। [१. यथा "देवाः = साध्याऽऋषयश्च" (यजु० ३१।९)। साध्या: = योगसाधनासम्पन्नाः। ऋषयः=मन्त्रद्रष्टारः, या मन्त्रार्थद्रष्टार:। २. चरित है मूलधन, जिसे कि व्यापार में लगाया है, और उस द्वारा प्राप्त लाभ है "उत्थित"। इस लाभ का आधा "कर" रूप है।]