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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    सूक्त - शौनकः देवता - सरस्वती छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सरस्वती सूक्त

    यस्ते॒ स्तनः॑ शश॒युर्यो म॑यो॒भूर्यः सु॑म्न॒युः सु॒हवो॒ यः सु॒दत्रः॑। येन॒ विश्वा॒ पुष्य॑सि॒ वार्या॑णि॒ सर॑स्वति॒ तमि॒ह धात॑वे कः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ते॒ । स्तन॑: । श॒श॒यु: । य: । म॒य॒:ऽभू: । य: । सु॒म्न॒ऽयु: । सु॒ऽहव॑: । य: । सु॒ऽदत्र॑: । येन॑ । विश्वा॑ । पुष्य॑सि । वार्या॑णि । सर॑स्वति । तम् । इ॒ह । धात॑वे । क॒: ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते स्तनः शशयुर्यो मयोभूर्यः सुम्नयुः सुहवो यः सुदत्रः। येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि सरस्वति तमिह धातवे कः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । ते । स्तन: । शशयु: । य: । मय:ऽभू: । य: । सुम्नऽयु: । सुऽहव: । य: । सुऽदत्र: । येन । विश्वा । पुष्यसि । वार्याणि । सरस्वति । तम् । इह । धातवे । क: ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 10; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (सरस्वति) हे ज्ञानसम्पन्ना पत्नी ! (ते) तेरा (यः स्तनः) जो स्तन (शशयुः) शिशु को शयन कराने वाला है (यः मयोभू) जो उसे सुखदायक है, (यः सुम्नयुः) जो उसके मन को प्रसन्न करने वाला है, (सुहवः) शिशु द्वारा सुगमता से आह्वान योग्य है, प्राप्त किया जा सकता है (सुदत्रः) जो उत्तम दुग्ध देता है, (येन) जिस द्वारा (विश्वा वार्याणि) सब वरणीय अर्थात् श्रेष्ठ गुणों को [शिशु में] (पुष्यसि) तू पुष्ट करती है, (तम्) उस स्तन को (इह) इस गृहस्थ जीवन में (धातवे) शिशुपानार्थ (कः) परिपुष्ट कर।

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