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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    सूक्त - उपरिबभ्रवः देवता - पूषा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्वस्तिदा पूषा सूक्त

    परि॑ पू॒षा प॒रस्ता॒द्धस्तं॑ दधातु॒ दक्षि॑णम्। पुन॑र्नो न॒ष्टमाज॑तु॒ सं न॒ष्टेन॑ गमेमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । पू॒षा । प॒रस्ता॑त् । हस्त॑म् । द॒धा॒तु॒ । दक्ष‍ि॑णम् । पुन॑: । न॒: । न॒ष्टम् । आ । अ॒जतु॒ । सम् । न॒ष्टेन॑ । ग॒मे॒म॒हि॒ ॥१०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि पूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्। पुनर्नो नष्टमाजतु सं नष्टेन गमेमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । पूषा । परस्तात् । हस्तम् । दधातु । दक्ष‍िणम् । पुन: । न: । नष्टम् । आ । अजतु । सम् । नष्टेन । गमेमहि ॥१०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 9; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (परस्तात्) परात्पर वर्तमान (पूषा) पोषक परमेश्वर, (दक्षिणम्; हस्तम्) वृद्धिकारक हमारे दाहिने हाथ को (परिदधातु) परिपुष्ट करे। ताकि (नष्टम्) नष्ट हुआ धन (नः) हमें (पुनः) फिर (आ अजतु) प्राप्त हो, और (नष्टेन) नष्ट हुए धन के साथ (संगमेमहि) हम संग करें।

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