Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
सूक्त - उपरिबभ्रवः
देवता - पूषा
छन्दः - त्रिपदार्षी गायत्री
सूक्तम् - स्वस्तिदा पूषा सूक्त
पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम क॒दा च॒न। स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठपूष॑न् । तव॑ । व्र॒ते । व॒यम् । न । रि॒ष्ये॒म । क॒दा । च॒न । स्तो॒तार॑: । ते॒ । इ॒ह । स्म॒सि॒ ॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन। स्तोतारस्त इह स्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठपूषन् । तव । व्रते । वयम् । न । रिष्येम । कदा । चन । स्तोतार: । ते । इह । स्मसि ॥१०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(पूषन्) हे पुष्ट करने वाले परमेश्वर ! (तव) तेरे (व्रते) व्रत में वर्तमान (वयम्) हम (कदाचन) कभी भी (न रिष्येम) न हिंसित हों। (इह) इस जीवन में (ते) तेरा (स्तोतारः) स्तवन करने वाले (स्मसि) हम हैं।
टिप्पणी -
["तव व्रते", मन्त्र (२) के अनुसार पूषा का व्रत "अप्रयुच्छन्" द्वारा निर्दिष्ट किया है। इस व्रत को धारण करते हुए हम उपासक भी हिंसित नहीं होते, क्योंकि बिना प्रमाद के सर्वदा सावधान हुए हम निज कर्तव्य पालन करते हैं और परमेश्वर का स्तवन करते हैं]।