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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - देवपत्नी
छन्दः - चतुष्पदा पङ्क्तिः
सूक्तम् - देवपत्नी सूक्त
उ॒त ग्ना व्य॑न्तु दे॒वप॑त्नीरिन्द्रा॒ण्यग्नाय्य॒श्विनी॒ राट्। आ रोद॑सी वरुणा॒नी शृ॑णोतु॒ व्यन्तु॑ दे॒वीर्य ऋ॒तुर्जनी॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । ग्ना: । व्य॒न्तु॒ । दे॒वऽप॑त्नी: । इ॒न्द्रा॒णी । अ॒ग्नायी॑ । अ॒श्विनी॑ ।राट् । आ । रोद॑सी । व॒रु॒णा॒नी । शृ॒णो॒तु॒ । व्यन्तु॑ । दे॒वी: । य: । ऋ॒तु: । जनी॑नाम् ॥५१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्यग्नाय्यश्विनी राट्। आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठउत । ग्ना: । व्यन्तु । देवऽपत्नी: । इन्द्राणी । अग्नायी । अश्विनी ।राट् । आ । रोदसी । वरुणानी । शृणोतु । व्यन्तु । देवी: । य: । ऋतु: । जनीनाम् ॥५१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(उत) तथा (ग्नाः) विदुषी (देवपत्नीः) देवपत्नियां, देवों अर्थात् विद्वानों की पत्नियां (व्यन्तु) प्रजननसम्पन्ना हों, (इन्द्राणी) सम्राट् की पत्नी, (अग्नायी) अग्रणी प्रधानमन्त्री की पत्नी, (अश्विनी) दो अश्विनौ में प्रत्येक की पत्नी "अश्विनी"। (रोदसी) रुद्र अर्थात् सेनाधिपति की पत्नी, (वरुणानी) माण्डलिक राजा की पत्नी,- इन में से प्रत्येक (राट्) जिसका कि राज्य--व्यवस्था के साथ सम्बन्ध है, वह प्रत्येक (आशृणोतु) हमारी प्रार्थनाओं को ध्यानपूर्वक सुने, और यथाकाल (देवीः) ये देवियां (व्यन्तु) प्रजननसम्पन्ना हों, (यः) जो (ऋतुः) ऋतुकाल (जनीनाम्) इन जननशक्तिसम्पन्न देवियों का है।
टिप्पणी -
[इन्द्र, वरुण= "इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा" (यजु० ८।३०)। रोदसी= रुद्रस्य पत्नी (निरुक्त १२।४।४६)। अग्निः= अग्रणीर्भवति (निरुक्त ७।४।१६)। अश्विनी= पुण्यकृतौ राजानौ, अश्विनौ (निरुक्त)। "अश्विनौ" दो है, इन में से प्रत्येक की पत्नी अश्विनी है। गत ८ मन्त्रों में आधिभौतिक पत्नियों का वर्णन हुआ है, अतः व्याख्येय मन्त्र की भी व्याख्या प्रकरणानुसार, आधिभौतिक की गई है। व्यन्तु= वी गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसनखादनेषु (अदादिः)। मन्त्र में "प्रजन" अभिप्रेत है। अश्विनी हैं, सम्भवतः राष्ट्र का नागरिक प्रजाविभाग तथा युद्धविभाग के दो मुखिया]।