अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 50/ मन्त्र 1
यथा॑ वृ॒क्षं अ॒शनि॑र्वि॒श्वाहा॒ हन्त्य॑प्र॒ति। ए॒वाहम॒द्य कि॑त॒वान॒क्षैर्ब॑ध्यासमप्र॒ति ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । वृ॒क्षम् । अ॒शनि॑: । वि॒श्वाहा॑ । हन्ति॑ । अ॒प्र॒ति । ए॒व । अ॒हम् । अ॒द्य । कि॒त॒वान् । अ॒क्षै: । ब॒ध्या॒स॒म् । अ॒प्र॒ति ॥५२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा वृक्षं अशनिर्विश्वाहा हन्त्यप्रति। एवाहमद्य कितवानक्षैर्बध्यासमप्रति ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । वृक्षम् । अशनि: । विश्वाहा । हन्ति । अप्रति । एव । अहम् । अद्य । कितवान् । अक्षै: । बध्यासम् । अप्रति ॥५२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 50; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(यथा) जैसे (अशनिः) बिजुली, (अप्रति) विना प्रतिरोध के, (विश्वाहा) सब दिनों में अर्थात् सर्वदा (वृक्षम्) वृक्ष को (हन्ति) नष्ट करती है, (एवा) इसी प्रकार (अद्य) आज (अप्रति) विना प्रतिरोध के (अहम्) मैं (कितवान्) जुआरियों का, (अक्षैः) अभियोगों द्वारा, (बध्यासम्) वध करूंगा।
टिप्पणी -
["अहम्" द्वारा कोई राज्याधिकारी प्रतीत होता है, जोकि जुआरियों पर कड़ी दृष्टि रखता है, और उन्हें पकड़ कर न्यायालय में उपस्थित कर अभियोगों द्वारा उन्हें बधदण्ड दिलाकर उन का बध करता है। अक्ष= Leagal Procedure a law suit (आप्टे)। न्यायालय को "धर्मसभा" तथा न्यायाध्यक्ष को "सभाचर" कहा है, (यजु० ३०।६), यथा “धर्माय सभाचरम्"। जुआ सम्बन्धी राज्याधिकारी को "अक्षराज" कहा है जो कि जूए की प्रक्रिया को जानता है, यथा "अक्षराजाय कितवम्" (यजु० ३०।१८)। इसी प्रकार दण्डित के वध करने वाले को "उपमन्थिता", तथा वकील को सम्भवतः "प्रश्नविवाक" [प्राङ्विवाक] कहा है, यथा "वधायोपमन्थितारम्" तथा "मर्यादायै प्रश्नविवाकम्" (यजु० ३०।१५; १०)। दो पाठ मिलते हैं, वध्यासम् और बध्यासम्। अतः दो अभिप्राय है बध करूंगा, या कारागार में बन्द करूंगा]। विशेष वक्तव्य-सूक्त में ९ मन्त्र हैं। ये मन्त्र एकविषयक नहीं, अपितु परस्परासम्बद्ध भिन्न-भिन्न विषयों के प्रतिपादक हैं। इस तथ्य को अथर्ववेद के अंग्रेजी में अनुवादकर्ता “विलियम ह्विट ह्विटनी" ने भी कहा है। यथा "The hymn is plainly made up of hetroganeous parts".]