अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 1
यथा॑ वृ॒क्षं अ॒शनि॑र्वि॒श्वाहा॒ हन्त्य॑प्र॒ति। ए॒वाहम॒द्य कि॑त॒वान॒क्षैर्ब॑ध्यासमप्र॒ति ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । वृ॒क्षम् । अ॒शनि॑: । वि॒श्वाहा॑ । हन्ति॑ । अ॒प्र॒ति । ए॒व । अ॒हम् । अ॒द्य । कि॒त॒वान् । अ॒क्षै: । ब॒ध्या॒स॒म् । अ॒प्र॒ति ॥५२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा वृक्षं अशनिर्विश्वाहा हन्त्यप्रति। एवाहमद्य कितवानक्षैर्बध्यासमप्रति ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । वृक्षम् । अशनि: । विश्वाहा । हन्ति । अप्रति । एव । अहम् । अद्य । कितवान् । अक्षै: । बध्यासम् । अप्रति ॥५२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (अशनिः) बिजुली (विश्वाहा) सब दिनों (अप्रति) बे रोक होकर (वृक्षम्) पेड़ को (हन्ति) गिरा देती है, (एव) वैसे ही (अहम्) मैं (अद्य) आज (अप्रति) बे रोक होकर (अक्षैः) पाशों से (कितवान्) ज्ञान नाश करनेवाले, जुआ खेलनेवालों को (बध्यासम्) नाश करूँ ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि जुआरी, लुटेरे आदिकों को तुरन्त दण्ड देकर नाश करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(यथा) येन प्रकारेण (वृक्षम्) तरुम् (अशनिः) विद्युत् (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (हन्ति) नाशयति (अप्रति) अप्रतिपक्षम् (एव) एवम् (अहम्) शूरः (अद्य) (कितवान्) कि ज्ञाने-क्त+वा गतिगन्धनयोः-क। कितवः किं तवास्तीति शब्दानुकृतिः कृतवान् वाशीर्नामकः-निरु० ५।२२। ज्ञाननाशकान्। वञ्चकान्। द्यूतकारकान् (अक्षैः) द्यूतसाधनैः पाशकादिभिः (बध्यासम्) हन्तेर्लिङि। नाशयेयम् ॥
विषय
कितव-निराकरण
पदार्थ
१. (यथा) = जैसे (अशनि:) = वैद्युत अग्नि (अप्रतिम) = अनुपम शक्तिवाला होता हुआ (विश्वाहा) = सदा (वृक्षं हन्ति) = वृक्ष को नष्ट करता है, (एव) = इसी प्रकार (अहम्) = मैं (अद्य) = आज (अप्रति) = प्रतिपक्षरहित होता हुआ (कितवान्) = जुआरियों को (अक्षः) = पासों के साथ (बध्यासम्) = नष्ट करता हूँ, राष्ट्र से इन्हें दूर करता हूँ। २. जुआ [यूत] अपुरुषार्थ का प्रतीक है। पुरुषार्थ के बिना धन प्राप्त करने के सब मार्ग राष्ट्र के अनैश्वर्य का कारण बनते हैं, अतः राजा का यह कर्तव्य होता है कि बह राष्ट्र में धूतप्रवृत्तियों को जागरित न होने दे।
भावार्थ
राजा को चाहिए कि राष्ट्र में घूतप्रवृत्ति को न पनपने दे।
भाषार्थ
(यथा) जैसे (अशनिः) बिजुली, (अप्रति) विना प्रतिरोध के, (विश्वाहा) सब दिनों में अर्थात् सर्वदा (वृक्षम्) वृक्ष को (हन्ति) नष्ट करती है, (एवा) इसी प्रकार (अद्य) आज (अप्रति) विना प्रतिरोध के (अहम्) मैं (कितवान्) जुआरियों का, (अक्षैः) अभियोगों द्वारा, (बध्यासम्) वध करूंगा।
टिप्पणी
["अहम्" द्वारा कोई राज्याधिकारी प्रतीत होता है, जोकि जुआरियों पर कड़ी दृष्टि रखता है, और उन्हें पकड़ कर न्यायालय में उपस्थित कर अभियोगों द्वारा उन्हें बधदण्ड दिलाकर उन का बध करता है। अक्ष= Leagal Procedure a law suit (आप्टे)। न्यायालय को "धर्मसभा" तथा न्यायाध्यक्ष को "सभाचर" कहा है, (यजु० ३०।६), यथा “धर्माय सभाचरम्"। जुआ सम्बन्धी राज्याधिकारी को "अक्षराज" कहा है जो कि जूए की प्रक्रिया को जानता है, यथा "अक्षराजाय कितवम्" (यजु० ३०।१८)। इसी प्रकार दण्डित के वध करने वाले को "उपमन्थिता", तथा वकील को सम्भवतः "प्रश्नविवाक" [प्राङ्विवाक] कहा है, यथा "वधायोपमन्थितारम्" तथा "मर्यादायै प्रश्नविवाकम्" (यजु० ३०।१५; १०)। दो पाठ मिलते हैं, वध्यासम् और बध्यासम्। अतः दो अभिप्राय है बध करूंगा, या कारागार में बन्द करूंगा]। विशेष वक्तव्य-सूक्त में ९ मन्त्र हैं। ये मन्त्र एकविषयक नहीं, अपितु परस्परासम्बद्ध भिन्न-भिन्न विषयों के प्रतिपादक हैं। इस तथ्य को अथर्ववेद के अंग्रेजी में अनुवादकर्ता “विलियम ह्विट ह्विटनी" ने भी कहा है। यथा "The hymn is plainly made up of hetroganeous parts".]
विषय
आत्म-संयम।
भावार्थ
(यथा) जिस प्रकार (अशनिः) मेघकी बिजुली (विश्वाहा) सब दिन, सदा ही (अप्रति) बिना किसी अन्य को प्रतिनिधि बनाये स्वयं ही (हन्ति) विनाश करती है, (कितवान्) तथा चतुर जुआरी जिस प्रकार जुआरियों को स्वयं पासों से मारता है (एवा) इस प्रकार ही (अहम्) मैं इन्द्र, आत्मा (अद्य) आज इन (कितवान्) जिनके पास कुछ नहीं ऐसे निःस्व, अचेतन जड़ विषयों को (अक्षैः) अपने अक्षों इन्द्रिय गण से (अप्रति) बिना अन्य किसी को प्रतिनिधि किये, स्वयं अपने बल से (बध्यासम्) मारूं, या ज्ञान और कर्म का विषय बनाऊं। अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय और प्राणेन्द्रियों से इन निश्चेतन जड़ पदार्थों को जो जीवन में बाधा उत्पन्न करें दबाकर अपने वश करलूं। अध्यात्म विषय को, ‘कितव’ या जुवारियों की क्रीड़ा के समान, ‘अश्व’ आदि द्वय्रर्थक पदों से श्लेष द्वारा वर्णन किया गया है।
टिप्पणी
अनुक्रमणिका हस्तलिपिपुस्तकेषु प्रायः सर्वत्र ‘कितवद्वन्धनकामः’, ‘बन्धनकाम’ इति ब्लूमफील्ड, ‘द्वन्द्वधन’ इति रीडरः, ‘बध्यासम्’ इतिपदनिर्देशात् ‘बाघन’ इति व्हिट्निः, बध्यासम्’ इति पाठ स्वीकारात् ‘बध’ इति सायणः। सार्वत्रिकपाठानुसारं ‘बध्यासम्’ इति सायणसम्मतः पाठः। ‘कितववधनकाम’ इतिः पाठः शुद्धः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कितववधनकामोंगिरा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १, २, ५, ९ अनुष्टुप्। ३, ७ त्रिष्टुप्। ४, जगती। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory by Karma
Meaning
Just as lightning always strikes the tree down without exception or obstruction, so shall I round up and smite the gambler without relent by the force of law.
Subject
Indrah
Translation
As the irresistible lightning always strikes down a tree, even so today, may I strike down the gambler (kitavan-aksaih) with dice irresistibly.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.52.1AS PER THE BOOK
Translation
As evermore the irresistible lightning flash strikes the tree so irresistible, may I conquer the gamblers with the dice.
Translation
Just as the lightning flash always irresistibly burns the tree, so, irresistibly, may I ever Suppress the brute passions with my mental powers.
Footnote
‘I’ means the soul.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यथा) येन प्रकारेण (वृक्षम्) तरुम् (अशनिः) विद्युत् (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (हन्ति) नाशयति (अप्रति) अप्रतिपक्षम् (एव) एवम् (अहम्) शूरः (अद्य) (कितवान्) कि ज्ञाने-क्त+वा गतिगन्धनयोः-क। कितवः किं तवास्तीति शब्दानुकृतिः कृतवान् वाशीर्नामकः-निरु० ५।२२। ज्ञाननाशकान्। वञ्चकान्। द्यूतकारकान् (अक्षैः) द्यूतसाधनैः पाशकादिभिः (बध्यासम्) हन्तेर्लिङि। नाशयेयम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal