अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 7
गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न वा॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वे॑। व॒यं राज॑सु प्रथ॒मा धना॒न्यरि॑ष्टासो वृज॒नीभि॑र्जयेम ॥
स्वर सहित पद पाठगोभि॑: । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दु॒:ऽएवा॑म् । यवे॑न । वा॒ । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वे॑ । व॒यम् । राज॑ऽसु । प्र॒थ॒मा: । धना॑नि । अरि॑ष्टास: । वृ॒ज॒नीभि॑: । ज॒ये॒म॒ ॥५२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन वा क्षुधं पुरुहूत विश्वे। वयं राजसु प्रथमा धनान्यरिष्टासो वृजनीभिर्जयेम ॥
स्वर रहित पद पाठगोभि: । तरेम । अमतिम् । दु:ऽएवाम् । यवेन । वा । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वे । वयम् । राजऽसु । प्रथमा: । धनानि । अरिष्टास: । वृजनीभि: । जयेम ॥५२.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(पुरुहूत) हे बहुत बुलाये गये राजन् ! (विश्वे) हम सब लोग (गोभिः) विद्याओं से (दुरेवाम्) दुर्गतिवाली (अमतिम्) कुमति को (तरेम) हटावें, (वा) जैसे (यवेन) जव आदि अन्न से (क्षुधम्) भूख को। (वयम्) हम लोग (राजसु) राजाओं के बीच (प्रथमाः) पहिले और (अरिष्टासः) अजेय होकर (वृजनीभिः) अनेक वर्जन शक्तियों से (धनानि) अनेक धनों को (जयेम) जीतें ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य विद्याओं द्वारा कुमति हटाकर प्रशंसनीय गुण प्राप्त करके अनेक धन प्राप्त करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(गोभिः) वाग्भिः। विद्याभिः (तरेम) अभिभवेम (अमतिम्) दुर्बुद्धिम् (दुरेवाम्) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इण् गतौ-वन्। दुर्गतियुक्ताम् (यवेन) यवादिना (क्षुधम्) बुभुक्षाम् (पुरुहूत) बह्वाह्वान (विश्वे) सर्वे वयम् (वयम्) (राजसु) नृपेषु (प्रथमाः) मुख्याः (धनानि) (अरिष्टासः) अहिंसिताः। अजेयाः (वृजनीभिः) कॄपॄवृजि०। उ० २।८१। वृजी वर्जने क्युन्। वर्जनशक्तिभिः। सेनाभिः ॥
विषय
गोदुग्ध वयव
पदार्थ
१. (गोभिः) = गोदग्ध के सेवन से हम उस (अमतिम्) = कत्सित मति को (तरेम) = पार कर जाएँ, जोकि (दुरेवाम्) = हमें दुष्टमार्ग पर ले-जाती है। गोदुग्ध सात्त्विक होने से हमें सुमति-सम्पन्न करके शुभ मार्ग पर ले-चलता है। हे (पुरुहत) = बहुतों-से पुकारे जानेवाले प्रभो। (विश्वे) = हम सब (क्षधम्) = भूख को (वा) = निश्चय से (यवेन) = जौ के द्वारा दूर करनेवाले हों। गोदुग्ध व जौ हमारा भोजन हो। २. इस सात्त्विक भोजन के द्वारा (वयम्) = हम (राजसु) = दीस जीवनवालों में (प्रथमा:) = प्रथम हों तथा (अरिष्टास:) = किसी भी प्रकार 'काम, क्रोध, लोभ'आदि शत्रुओं से हिंसित न होते हुए (वृजनीभिः) = पाप का वर्जन करनेवाली शक्तियों के द्वारा (धनानि जयेम) = धनों पर विजय प्राप्त करें।
भावार्थ
'गोदुग्ध व यव' वह सात्त्विक भोजन है जो हमें दुष्ट मार्ग पर ले-जानेवाली कुमति से बचाता है। गोदुग्ध व यव का सेवन करते हुए हम दीस जीवनवाले बनें। वासनाओं से हिसित न होते हुए हम शुभ मागों से ही धनों का अर्जन करें।
भाषार्थ
(गोभिः) गौओं [के दूध] द्वारा (दुरेवाम्) दुष्परिणामी (अमतिम्) मननशक्ति के अभाव का, मति की जड़ता का (तरेम) हम परिहार करें, (वा) तथा (पुरुहूत) हे बहुतों द्वारा पुकारे गये परमेश्वर ! (विश्वे) हम सब (यवेन) जौं द्वारा (क्षुधम्) क्षुधा को (तरेम) निवारित करें। (राजसु) राजाओं में [निहित] (प्रथमा धनानि) प्रथम कोटि के श्रेष्ठ धनों को, (अरिष्टासः वयम्) हिंसित न हुए हम [प्रजाजन के नेता] (वृजनीभिः) बलशाली प्रजाओं द्वारा (जयेम) जीतें।
टिप्पणी
[गोभिः= “अथाप्यस्यां ताद्धितेन कृत्स्नवन्निगमा भवन्ति "गोभिः श्रीणीत मत्सरम्" (ऋ० ९।४६।४) इति पयसः” (निरुक्त २।२।५)। इस प्रकार "गोभिः" का अर्थ है गौओं के दूध द्वारा। गौ का दूध, गोघृत, तथा गोदधि मति की जड़ता को दूर करते हैं। "यव" शब्द व्रीहि का भी उपलक्षक है। ये दोनों क्षुधानिवृत्ति के लिये कहे गए हैं। राजा लोग स्वार्थवृत्ति से यदि प्रजा द्वारा प्राप्त धनों का संग्रह करते जायं, तो प्रजा के नेता बलशाली प्रजाशक्ति द्वारा राजाओं से धन छीन लें,– यह वेदाज्ञा है। वृजनम् बलनाम (निघं० २।९)। व्याख्येयमन्त्र में न कितव, न अक्ष, न कृत शब्द ही पठित हैं, न किसी प्रकार मन्त्र का सम्बन्ध द्यूतक्रीड़ा के साथ है। तो भी सायणाचार्य ने "राजसु" का अर्थ "नृपेषु, राजमानेषु दीव्यत्तु वा पुरुषेषु" कर, मन्त्र का सम्बन्ध द्यूतक्रीड़ा के साथ कर दिया है]।
विषय
आत्म-संयम।
भावार्थ
हम (गोभिः) गौ आदि पशुओं का पालन करके (दुः-एवाम्) दुःख प्राप्त कराने वाली (अमतिम्) दुर्गति या दरिद्रता से (तरेम) पार हों, अर्थात् गोपालन से हम अपनी दरिद्रता का नाश करें। हे (पुरु-हूत) बहुत प्रजाओं से पूजित इन्द्र ! राजन् ! (यवेन) जौ आदि धान्यों से (विश्वे) हम सब (क्षुधम्) भूख से (तरेम) पार हों। अन्न से भूख को शान्त करें और (राजसु) राजाओं के बीच में (प्रथमाः) उत्कृष्ट पद प्राप्त करके (वयं) हम लोग (अरिष्टासः) परस्पर की हिंसा न करते हुए, स्वयं भी सदा सुरक्षित रहकर (वृजनीभिः*) बलवती शक्तियों द्वारा (धनानि) नाना प्रकार की धनसम्पत्तियों को (जयेम) जीतें, प्राप्त करें। सायण ने इस मन्त्र में भी ‘वृजनी’ शब्द से बलकारिणी पासे की रमल की दण्डियां ली हैं। यदि वे ऋ० १०। ४२। १०॥ में अपने ही किये इस मन्त्र का अर्थ देख लेते तो अथर्ववेद में यह अनर्थ न करते। अध्यात्म पक्ष में—(गोभिः) वेदवाणियों द्वारा (अमतिम्) अविद्या से पार हों, हे पुरुहूत परमात्मन् ! हम सब सात्विक होकर यव आदि अन्नों से भूख को दूर करें। राजमान विद्वानों में श्रेष्ठ होकर हम परस्पर हिंसा न करके, प्रेम से रक्षा करते हुए अपनी (वृजनीभिः) बाधाओं और विषय प्रलोभनों का वर्जन कर देने वाली त्याग-वृत्तियों और वैराग्य साधनाओं द्वारा (धनानि) धारणीय बलों को प्राप्त करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘पुरुहूत विश्वाम्’ (तृ०) ‘वयं राजभिः’ (च०) ‘धनान्यस्माकेन वृजनेन जयेम’ इति ऋ०। वृजनेन बलेन इसि सायणः ऋग्वेदभाष्ये। बलकारिणीभिरिति अथर्वभाष्ये।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कितववधनकामोंगिरा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १, २, ५, ९ अनुष्टुप्। ३, ७ त्रिष्टुप्। ४, जगती। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory by Karma
Meaning
O Ruler, universally loved and invoked, let us solve the difficult problem of ignorance and poverty by education, and development of land and cattle. Let us solve the problem of hunger by the development of barley. Let us be the first among independent nations and, healthy and unviolated, let us win wealth by our efforts in our own ways.
Translation
O Lord, invoked by the multitude, may we all overcome evil intentions leading to misery by our Sense organs, and hunger by food-grains. May we, the foremost among kings, win the riches with our prowesses unharmed.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.52.7AS PER THE BOOK
Translation
Let us overcome the troublesome Poverty with the domestication of cattle like cow etc, let us conquer all starvations with the cereal like barley etc, and we enjoying first rank amongst the kings and enjoying harmony with each other obtain wealthy possession by own endeavors.
Translation
O much-invoked king, may we all remove with knowledge poverty that brings sin, repel hunger with store of barley. May we observing non-violence, first among the princes, obtain riches by our own exertions.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(गोभिः) वाग्भिः। विद्याभिः (तरेम) अभिभवेम (अमतिम्) दुर्बुद्धिम् (दुरेवाम्) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इण् गतौ-वन्। दुर्गतियुक्ताम् (यवेन) यवादिना (क्षुधम्) बुभुक्षाम् (पुरुहूत) बह्वाह्वान (विश्वे) सर्वे वयम् (वयम्) (राजसु) नृपेषु (प्रथमाः) मुख्याः (धनानि) (अरिष्टासः) अहिंसिताः। अजेयाः (वृजनीभिः) कॄपॄवृजि०। उ० २।८१। वृजी वर्जने क्युन्। वर्जनशक्तिभिः। सेनाभिः ॥
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