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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विजय सूक्त
    268

    कृ॒तं मे॒ दक्षि॑णे॒ हस्ते॑ ज॒यो मे॑ स॒व्य आहि॑तः। गो॒जिद्भू॑यासमश्व॒जिद्ध॑नंज॒यो हि॑रण्य॒जित् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒तम् । मे॒ । दक्षि॑णे । हस्ते॑ । ज॒य: । मे॒ । स॒व्ये । आऽहि॑त: । गो॒ऽजित् । भू॒या॒स॒म् । अ॒श्व॒ऽजित् । ध॒न॒म्ऽज॒य: । हि॒र॒ण्य॒ऽजित् ॥५२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो मे सव्य आहितः। गोजिद्भूयासमश्वजिद्धनंजयो हिरण्यजित् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृतम् । मे । दक्षिणे । हस्ते । जय: । मे । सव्ये । आऽहित: । गोऽजित् । भूयासम् । अश्वऽजित् । धनम्ऽजय: । हिरण्यऽजित् ॥५२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 50; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृतम्) कर्म (मे) मेरे (दक्षिणे) दाहिने (हस्ते) हाथ में और (जयः) जीत (मे) मेरे (सव्ये) बायें हाथ में (आहितः) स्थित है। मैं (गोजित्) भूमि जीतनेवाला, (अश्वजित्) घोड़े जीतनेवाला, (धनंजयः) धन जीतनेवाला और (हिरण्यजित्) सुवर्ण जीतनेवाला (भूयासम्) रहूँ ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य पराक्रमी होकर सब प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त कर सुखी होवें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(कृतम्) विहितं कर्म (मे) मम (दक्षिणे) (हस्ते) पाणौ (जयः) उत्कर्षः (मे) (सव्ये) वामे (आहितः) स्थापितः (गोजित्) भूमिजेता (भूयासम्) (अश्वजित्) अश्वानां जेता (धनञ्जयः) अ० ३।१४।२। धनानां जेता (हिरण्यजित्) सुवर्णस्य जेता ॥

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    विषय

    पुरुषार्थ और विजय

    पदार्थ

    १. (कृतम्) = पुरुषार्थ (मे दक्षिणे हस्ते) = मेरे दाहिने हाथ में हो, तब मे सव्ये मेरे बायें हाथ में (जयः आहितः) = विजय स्थापित होती है। पुरुषार्थ से ही विजय प्राप्त होती है। मैं पुरुषार्थ करता हूँ और विजयी बनता हूँ। २. उस समय मैं (गोजित् भूयासम्) = गौवों का विजय करनेवाला, (अश्वजित्) = अश्वों का विजेता, (धनंजयः) = धनों का विजय करनेवाला और (हिरण्यजित्) = स्वर्ण का जीतनेवाला बनता हूँ अथवा मैं जानेन्द्रियों [गोजित], कर्मेन्द्रियों [अश्वजित्], ज्ञानधन [धनंजयः], तथा हितरमणीय आत्मज्ञान [हिरण्यजित्] को प्राप्त करनेवाला बनता हूँ।

    भावार्थ

    पुरुषार्थ ही मनुष्य को विजयी बनानेवाला है। यह हमें 'गोजित, अश्वजित, धनंजय व हिरण्यजित्' बनाता है।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( मे  ) = मेरे  ( दक्षिणे ) = दाहिने  ( हस्ते ) = हाथ में  ( कृतम् ) = कर्म है।  ( मे सव्ये ) = मेरे बाएँ हाथ में  ( जय: ) = जीत  ( आहितः ) =  स्थित है। मैं  ( गोजिद् ) = भूमि को जीतनेवाला  ( अश्वजित् ) = घोड़े जीतनेवाला  ( धनंजयः )  = धन को जीतनेवाला और  ( हिरण्यजित् ) = सुवर्ण जीतनेवाला  ( भूयासम् ) = होऊँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे परमेश्वर ! मेरे दाहिने हाथ में कर्म या उद्यम दे। बाएँ हाथ में विजय दे। आपकी कृपा से मैं भूमि को जीतनेवाला और घोड़े, धन तथा सुवर्ण जीतनेवाला होऊँ । परमात्मन् ! अगर मैं आपकी कृपा से उद्यमी बन जाऊँ, तब पृथिवी, अश्व, गौ आदि पशु, सुवर्ण, धन आदि की प्राप्ति कोई कठिन नहीं । इसलिए आप मुझे उद्यमी बनाएँ । मैं धनी होकर आप सुखी और संसार को भी लाभ पहुँचाऊँ।

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    भाषार्थ

    (कृतम्) कर्मशक्ति (मे) मेरे (दक्षिणे हस्ते) दाहिने हाथ में है तो (जयः) विजय (मे) मेरे (सव्ये) बाएं हाथ में (आहितः) निहित है। (गोजित्) गौओं को जीतने वाला, (अश्वजित्) अश्वों को जीतने वाला, (धनंजयः) धनविजयी, (हिरण्यजित्) सुवर्णविजयी (भूयासम्) मैं होऊं।

    टिप्पणी

    [दक्षिणे कृतम् = लिखने, खाने, भार उठाने आदि में दाहिना-हाथ कामकारी होता है। कर्मशक्ति द्वारा परिश्रम कर गौ, अश्व, धन, हिरण्य आदि की प्राप्ति होती है, बिना काम किये नहीं]।

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    विषय

    आत्म-संयम।

    भावार्थ

    (मे) मेरे (दक्षिण) दायें (हस्ते) हाथ में (कृतं) मेरा अपना किया हुआ कर्म, पुरुषार्थ है और (मे सव्ये) मेरे बायें हाथ में (जयः) जय, विजय (आ-हितः) रक्खा है। मैं अपने परिश्रम से (गो-जित्) गोधन का विजेता, (अश्व-जित्) अश्वों का विजेता (धनंजयः) धनका विजेता और (हिरण्यजित्) स्वर्ण का विजेता (भूयासम्) होऊं। अध्यात्म में कृत = साधना या तपस्या एक हाथ में है तो दूसरे हाथ में सब विषयों पर विजय है। तप के बल से गो = इन्द्रियों, अश्व = कर्मेन्द्रिय और मन धन= अष्ट सिद्धियों और (हिरण्य) आत्मा और नवनिधियों पर भी वश हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कितववधनकामोंगिरा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १, २, ५, ९ अनुष्टुप्। ३, ७ त्रिष्टुप्। ४, जगती। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory by Karma

    Meaning

    With action in my right hand, success and victory lies collected in the left. Let me be the winner of cows, lands and culture, horses and achievement, money and wealth of gold and grace.

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    Translation

    Dice (Krtam) is in my right hand and the victory lies in my left. May I become winner of cows, winner of horses, winner of wealth and winner of gold. (Or, effort in my right hand, then victory in assured in my left hand)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.52.8AS PER THE BOOK

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    Translation

    I have perseverance in right hand and victory lies in my left hand. May I be the winner of cows, the winner of horses the winner of wealth and the winner of gold.

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    Translation

    When there is enterprise in my right hand, victory will certainly lie in my left, I would that I were winner of cattle and horses, wealth and gold.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(कृतम्) विहितं कर्म (मे) मम (दक्षिणे) (हस्ते) पाणौ (जयः) उत्कर्षः (मे) (सव्ये) वामे (आहितः) स्थापितः (गोजित्) भूमिजेता (भूयासम्) (अश्वजित्) अश्वानां जेता (धनञ्जयः) अ० ३।१४।२। धनानां जेता (हिरण्यजित्) सुवर्णस्य जेता ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    কৃতং মে দক্ষিণে হস্তে জয়ো মে সব্য আহিতঃ।

    গোজিদ্ভূয়াসমশ্বজিদ্ধনংজয়ো হিরণ্যজিৎ।।৫৬।।

    (অথর্ব ৭।৫০।৮)

    পদার্থঃ (কৃতম্) পুরুষার্থ বা কর্ম (মে দক্ষিণে হস্তে) আমার ডান হাত হলে, (মে সব্যে) আমার বাম হাতে (জয়ঃ আহিতঃ) জয় স্থাপিত হয়। সেই সময় আমি (গোজিৎ ভূয়াসম্) গো অর্থাৎ জ্ঞানেন্দ্রিয় জয় করতে সমর্থ হই, (অশ্বজিৎ) কর্মেন্দ্রিয়ের বিজেতা, (ধনঞ্জয়ঃ) জ্ঞানধনের বিজেতা, (হিরণ্যজিৎ) অতিরমণীয় আত্মজ্ঞান জয় করতে সমর্থ হই।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পুরুষার্থ অর্থাৎ ধর্মাদি পথ অবলম্বনের মাধ্যমে কর্ম করে ঈশ্বরের আজ্ঞা পালনের মাধ্যমেই মানুষ সদা সর্বদা জয় লাভ করে। এর দ্বারাই মানুষ নিজের জ্ঞানেন্দ্রিয়, কর্মেন্দ্রিয় জয় করে জ্ঞানরূপ ধন লাভ করে। যার ফলে সর্বশেষে আত্মজ্ঞান লাভ হয় ।।৫৬।।

     

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