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अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - विराडुष्णिक्
सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त
इन्द्र॒ सेनां॑ मोहया॒मित्रा॑णाम्। अ॒ग्नेर्वात॑स्य॒ ध्राज्या॒ तान्विषू॑चो॒ वि ना॑शय ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । सेना॑म् । मो॒ह॒य॒ । अ॒मित्रा॑णाम् ।अ॒ग्ने: । वात॑स्य । ध्राज्या॑ । तान् । विषू॑च: । वि । ना॒श॒य॒ ॥१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र सेनां मोहयामित्राणाम्। अग्नेर्वातस्य ध्राज्या तान्विषूचो वि नाशय ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । सेनाम् । मोहय । अमित्राणाम् ।अग्ने: । वातस्य । ध्राज्या । तान् । विषूच: । वि । नाशय ॥१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
विषय - अग्नि, वायव्य और तमसास्त्र
शब्दार्थ -
(इन्द्र) हे राजन् ! (अमित्राणाम्) शत्रुओं की (सेनाम्) सेना को (मोहय) मोहित कर दे, किंकर्तव्यविमूढ़ बना दे और (अग्ने: ध्राज्या) आग्नेयास्त्र से (वातस्य) वायव्यास्त्र से (तान्) उन सब सैनिकों को (विषूच:) छिन्न-भिन्न करके (विनाशय) नष्ट कर डाल ।
भावार्थ - इस मन्त्र में ग्राग्नेय और वायव्यास्त्र का स्पष्ट वर्णन है । (मरुतः) हे वीर सैनिको ! (या असौ) जो वह (परेषां सेना) शत्रुओं की सेना (ओजसा) अपने बल से (स्पर्धमाना) आक्रमण करती हुई (अस्मान्) हमारी ओर (अभि एति) चली आ रही है (ताम् ) उस सेना को (अपव्रतेन तमसा ) आच्छादक तमसास्त्र से, धूमास्त्र से (विध्यत) वेध डाल (यथा) जिससे (एषां) इनमें से (अन्यः अन्यम्) एकदूसरे को, कोई किसीको (न जानात्) न जाने, न पहचान पाए । इस मन्त्र में तमसा अथवा धूमास्त्र का स्पष्ट वर्णन है । वेद में युद्ध के सभी अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन है । वेद के आधार पर ही महाभारत काल में ऐसे-ऐसे अस्त्र और शस्त्रों का निर्माण किया गया था कि बीसवीं शताब्दी का वैज्ञानिक भी अभी तक वहाँ नहीं पहुँच पाया है। महाभारत में नारायणास्त्र का वर्णन आता है। आज के वैज्ञानिक अभी तक इस प्रकार का आविष्कार करने में असमर्थ रहे हैं ।
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