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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 30

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 30/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, सांमनस्यम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    येन॑ दे॒वा न वि॒यन्ति॒ नो च॑ विद्वि॒षते॑ मि॒थः। तत्कृ॑ण्मो॒ ब्रह्म॑ वो गृ॒हे सं॒ज्ञानं॒ पुरु॑षेभ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । दे॒वा: । न । वि॒ऽयन्ति॑ । नो इति॑ । च॒ । वि॒ऽद्वि॒षते॑ । मि॒थ: । तत् । कृ॒ण्म॒: । ब्रह्म॑ । व॒: । गृ॒हे । स॒म्ऽज्ञान॑म् । पुरु॑षेभ्य: ॥३०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन देवा न वियन्ति नो च विद्विषते मिथः। तत्कृण्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञानं पुरुषेभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । देवा: । न । विऽयन्ति । नो इति । च । विऽद्विषते । मिथ: । तत् । कृण्म: । ब्रह्म । व: । गृहे । सम्ऽज्ञानम् । पुरुषेभ्य: ॥३०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 30; मन्त्र » 4

    शब्दार्थ -
    (येन) जिस वेदज्ञान को प्राप्त करके (देवाः) देवगण ज्ञानी लोग (न वियन्ति) एक-दूसरे का विरोध नहीं करते, एक-दूसरे से अलग होकर नहीं चलते (नो च) और न ही (मिथः) परस्पर (विद्विषते) द्वेष करते हैं (तत्) उस (ब्रह्म) वेदज्ञान को (संज्ञानम्) जो कि सम्यक् ज्ञान देनेवाला है (व:) तुम्हारे (गृहे) घरों में (पुरुषेभ्यः) सभी पुरुषों के लिए (कृण्मः) करते हैं, देते हैं ।

    भावार्थ - प्रयोजन के बिना मूर्ख भी किसी कार्य को नहीं करता । हम वेद क्यों पढ़ें ? वेद पढ़ने से हमें क्या लाभ होगा ? मन्त्र में इसी प्रश्न और जिज्ञासा का सुन्दर उत्तर है । १. वेद के पढ़नेवाले एक-दूसरे का विरोध नहीं करते, वे एक-दूसरे से अलग होकर नहीं चलते। वेद सबको केन्द्रित करके एक बना देता है । २. वेद पढ़नेवालों में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष और घृणा भावना नहीं होती। यदि एक व्यक्ति उन्नति कर रहा है तो दूसरा उसे देखकर जलता नहीं । ३. वेद सम्यक् एवं यथार्थ ज्ञान देनेवाला है । वेद के ज्ञान में कोई कमी अथवा त्रुटि नहीं होती। ४. ऐसा सम्यक् ज्ञान देनेवाला वेद प्रत्येक परिवार में, प्रत्येक घर में होना चाहिए । आज हमारे घरों में उपन्यास और किस्से-कहानियों की पुस्तकें मिल सकती हैं; वेदों के दर्शन होना कठिन है। यदि आपके घर में वेद नहीं हैं तो आज ही वेद लाकर अपने घर में रखिए ।

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