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अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 15/ मन्त्र 8
वि॒श्वाहा॑ ते॒ सद॒मिद्भ॑रे॒माश्वा॑येव॒ तिष्ठ॑ते जातवेदः। रा॒यस्पोषे॑ण॒ समि॒षा मद॑न्तो॒ मा ते॑ अग्ने॒ प्रति॑वेशा रिषाम ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वाहा॑ । ते॒ । सद॑म् । इत् । भ॒रे॒म॒ । अश्वा॑यऽइव । तिष्ठ॑ते । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । रा॒य: । पोषे॑ण । सम् । इ॒षा । मद॑न्त: । मा । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । प्रति॑ऽवेशा: । रि॒षा॒म॒ ॥१५.८॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वाहा ते सदमिद्भरेमाश्वायेव तिष्ठते जातवेदः। रायस्पोषेण समिषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वाहा । ते । सदम् । इत् । भरेम । अश्वायऽइव । तिष्ठते । जातऽवेद: । राय: । पोषेण । सम् । इषा । मदन्त: । मा । ते । अग्ने । प्रतिऽवेशा: । रिषाम ॥१५.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 15; मन्त्र » 8
विषय - ब्राह्मणों की सेवा
शब्दार्थ -
(जातवेदः) हे ज्ञानी ! विद्वन् ! (इव) जिस प्रकार (तिष्ठते अश्वाय) अपने स्थान पर खड़े हुए, रथ आदि में न जुतनेवाले घोड़े के लिए घास और दाना निरन्तर दिया ही जाता है इसी प्रकार हम (ते) तेरे लिए (सदम् इत्) सदा ही (विश्वाहा) सब दिन (भरेम) मर्यादा रूप में प्रदान करें (अग्ने) हे तेजस्वी ब्राह्मण ! हम (रायस्-पोषेण) धन और पुष्टि कारक पदार्थो से (इषा) अन्नों से, खाद्य पदार्थों से (सम् मदन्तः) खूब हृष्ट-पुष्ट होते हुए (ते प्रतिवेशा :) तेरे सेवक बनकर (मा रिषाम) कभी नष्ट न हों ।
भावार्थ - आज घरों में कुत्ते पाले जाते हैं। कुत्ते पालनेवाले स्वर्ग में नहीं जा सकते । हमें कीट-पतंग और कुत्तों को भी अपने अन्न में से देना चाहिए परन्तु इससे आगे भी बढ़ना चाहिए । धनवानों को अपने घर में ब्राह्मण रखने चाहिएँ । उनकी इतनी आजीविका निश्चित कर देनी चाहिए जिससे उन्हें किसी वस्तु का अभाव न रहे और वे रात-दिन वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन करते रहें । वेद ने एक सुन्दर उपमा दी है। जिस प्रकार घोड़ा चाहे काम पर हो अथवा अपने स्थान पर खड़ा हो उसे घास और दाना दिया ही जाता है इसी प्रकार विद्वान् चाहे उपदेश दे या न दे, शास्त्रार्थ करे या न करे, उसका भरण-पोषण होना ही चाहिए। जैसे पहलवान चाहे कुश्ती लड़े या न लड़े उसे भोजन दिया ही जाता है इसी प्रकार ब्राह्मण की सेवा होनी चाहिए । यदि आज दस-बीस धनिक कुछ विद्वानों को बैठा दें तो भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर जो आक्रमण हो रहे हैं वे समाप्त हो सकते हैं । मन्त्र के उत्तरार्द्ध में इसी बात की ओर संकेत है ।
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