अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 5
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
सा॒धुं पु॒त्रं हि॑र॒ण्यय॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठसा॒धुम् । पु॒त्रम् । हि॑र॒ण्यय॑म् ॥१२९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
साधुं पुत्रं हिरण्ययम् ॥
स्वर रहित पद पाठसाधुम् । पुत्रम् । हिरण्ययम् ॥१२९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 5
मन्त्र विषय - মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ
भाषार्थ -
(সাধুম্) সাধু [কার্য সাধনকারী], (হিরণ্যযম্) তেজোময় (পুত্রম্) পুত্রকে [সন্তানকে] (ক্ব) কোথায় (আহতম্) তাড়িত করে (পরাস্যঃ) তুমি দূরে নিক্ষেপ করেছো॥৫, ৬॥
भावार्थ - সৃষ্টির মাঝে মা নিজের পুরুষের প্রতি প্রীতিপূর্বক সন্তান উৎপন্ন করে, সেই সন্তানকে কুমার্গ থেকে রক্ষা করে তেজস্বী ও সদাচারী করুক ॥৩-৬॥
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