Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 132

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 2
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अला॑बुकं॒ निखा॑तकम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अला॑बुक॒म् । निखा॑तकम् ॥१३२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अलाबुकं निखातकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अलाबुकम् । निखातकम् ॥१३२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (অলাবুকম্) অনধঃপতনশীল/ না পতনশীল এবং (নিখাতকম্) দৃঢ়ভাবে স্থাপিত/স্থিত/বর্তমান॥২॥

    भावार्थ - এই ব্রহ্ম নিরাধার একাকী হয়ে সকলের আধা এবং নির্মাতা, বায়ু আদি পদার্থ পরমেশ্বরের আজ্ঞায় কার্য করে। সকল মনুষ্য সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করুক ॥১-৪॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top