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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    आ नि॑रे॒कमु॒त प्रि॒यमिन्द्र॒ दर्षि॒ जना॑नाम् । धृ॒ष॒ता धृ॑ष्णो॒ स्तव॑मान॒ आ भ॑र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नि॒रे॒कम् । उ॒त । प्रि॒यम् । इन्द्र॑ । दर्षि॑ । जना॑नाम् । धृ॒ष॒ता । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । स्तव॑मानः । आ । भ॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ निरेकमुत प्रियमिन्द्र दर्षि जनानाम् । धृषता धृष्णो स्तवमान आ भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । निरेकम् । उत । प्रियम् । इन्द्र । दर्षि । जनानाम् । धृषता । धृष्णो इति । स्तवमानः । आ । भर ॥ ८.२४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 4

    Meaning -
    Indra, lord of glory, give us a vision of the commonwealth of humanity of the dearest and most eminent order and, O lord of resolute will and action, sung and celebrated as such, bring us that wealth and order with the spirit of your will and resolution beyond doubt and question, fear and suspicion.

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