यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 6
ऋषिः - वरुण ऋषिः
देवता - आपो देवताः
छन्दः - स्वराट ब्राह्मी बृहती,
स्वरः - मध्यमः
5
प॒वित्रे॑ स्थो वैष्ण॒व्यौ सविर्तुवः॑ प्रस॒वऽउत्पु॑ना॒म्यच्छि॑द्रेण प॒वित्रे॑ण॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॑। अनि॑भृष्टमसि वा॒चो बन्धु॑स्तपो॒जाः सोम॑स्य दा॒त्रम॑सि॒ स्वाहा॑ राज॒स्वः॥६॥
स्वर सहित पद पाठप॒वित्रे॒ऽइति॑ प॒वित्रे॑। स्थः॒। वै॒ष्ण॒व्यौ᳖। स॒वि॒तुः। वः॒। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। उत्। पु॒ना॒मि॒। अच्छि॑द्रेण। प॒वित्रे॑ण। सूर्य॑स्य। र॒श्मिभि॒रिति॑ र॒श्मिऽभिः॑। अनि॑भृष्ट॒मित्यनि॑ऽभृष्टम्। अ॒सि॒। वा॒चः। बन्धुः॑। त॒पो॒जा इति॑ तपः॒ऽजाः। सोम॑स्य। दा॒त्रम्। अ॒सि॒। स्वाहा॑। रा॒ज॒स्व᳖ इति॑ राज॒ऽस्वः᳖ ॥६॥
स्वर रहित मन्त्र
पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव ऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । अनिभृष्टमसि वाचो बन्धुस्तपोजाः सोमस्य दात्रमसि स्वाहा राजस्वः ॥
स्वर रहित पद पाठ
पवित्रेऽइति पवित्रे। स्थः। वैष्णव्यौ। सवितुः। वः। प्रसव इति प्रऽसवे। उत्। पुनामि। अच्छिद्रेण। पवित्रेण। सूर्यस्य। रश्मिभिरिति रश्मिऽभिः। अनिभृष्टमित्यनिऽभृष्टम्। असि। वाचः। बन्धुः। तपोजा इति तपःऽजाः। सोमस्य। दात्रम्। असि। स्वाहा। राजस्व इति राजऽस्वः॥६॥
विषय - जैसे कुमार पुरुष ब्रह्मचर्य्य से विद्या ग्रहण करें, वैसे कन्या भी पढ़े, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ -
हे सभापति राजपुरुष! जिस लिये आप (वाचः) वेदवाणी के (अनिभृष्टम्) भृष्टतारहित आचरण के लिये (बन्धुः) भाई (असि) हैं, (सोमस्य) ओषधियों के काटने वाले (तपोजाः) ब्रह्मचर्य्यादि तप से प्रसिद्ध (असि) हैं, आप की आज्ञा से (सवितुः) सब जगत् को उत्पन्न करनेहारे ईश्वर के (प्रसवे) उत्पन्न हुए जगत् में (वैष्णव्यौ) सब विद्या, अच्छी शिक्षा, शुभ गुण, कर्म और स्वभाव में व्यापनशील और (पवित्रे) शुद्ध आचरणवाली (स्थः) तुम दोनों हो। हे पढ़ाने, परीक्षा करने और पढ़नेहारी स्त्री लोगो! मैं (सवितुः) ईश्वर के (प्रसवे) उत्पन्न किये इस जगत् में (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (रश्मिभिः) किरणों के समान (अच्छिद्रेण) छेदरहित (पवित्रेण) विद्या, अच्छी शिक्षा, धर्मज्ञान, जितेन्द्रियता और ब्रह्मचर्य्य आदि करके पवित्र किये हुए से (वः) तुम लोगों को (उत्पुनामि) अच्छे प्रकार पवित्र करता हूं, तुम लोग (स्वाहा) सत्य क्रिया से (राजस्वः) राजाओं में वीरों को उत्पन्न करने वाली हो॥६॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा आदि पुरुषो! तुम लोग इस जगत् में कन्याओं को पढ़ाने के लिये शुद्धविद्या की परीक्षा करने वाली स्त्री लोगों को नियुक्त करो, जिससे ये कन्या लोग विद्या और शिक्षा को प्राप्त होके जवान हुई प्रिय वर पुरुषों के साथ स्वयंवर विवाह करके वीर पुरुषों को उत्पन्न करें॥६॥
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