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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - वैश्वनरो देवता छन्दः - स्वराड् जगती स्वरः - निषादः
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    अ॒ग्निर्ऋषिः॒ पव॑मानः॒ पाञ्च॑जन्यः पु॒रोहि॑तः। तमी॑महे महाग॒यम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्य॒ग्नये॑ त्वा॒ वर्च॑सऽए॒ष ते॒ योनि॑र॒ग्नये॑ त्वा॒ वर्च॑से॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः। ऋषिः॑। पव॑मानः। पाञ्च॑जन्य॒ इति॒ पाञ्च॑ऽजन्यः। पु॒रोहि॑त॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑तः। तम्। ई॒म॒हे॒। म॒हा॒ग॒यमिति॑ महाऽग॒यम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वर्च॑से। ए॒षः। ते। योनिः॑। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वर्च॑से ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निरृषिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः । तमीमहे महागयम् । उपयामगृहीतोस्यग्नये त्वा वर्चसेऽएष ते योनिरग्नये त्वा वर्चसे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। ऋषिः। पवमानः। पाञ्चजन्य इति पाञ्चऽजन्यः। पुरोहित इति पुरःऽहितः। तम्। ईमहे। महागयमिति महाऽगयम्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। अग्नये। त्वा। वर्चसे। एषः। ते। योनिः। अग्नये। त्वा। वर्चसे॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! (पाञ्चजन्यः) पाँच जनों वा प्राणों की क्रिया में उत्तम (पुरोहितः) पहिले हित करने हारा (पवमानः) पवित्र (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता और (अग्निः) अग्नि के समान विद्या से प्रकाशित है (तम्) उस (महागयम्) बड़े-बड़े घर सन्तान वा धन वाले की जैसे हम लोग (ईमहे) याचना करें, वैसे आप (वर्चसे) पढ़ाने हारे और (अग्नये) विद्वान् के लिये (उपयामगृहीतः) समीप के नियमों से ग्रहण किये हुए (असि) हैं, इस से (त्वा) आप को तथा जिन (ते) आप को (एषः) यह (योनिः) निमित्त (वर्चसे) विद्याप्रकाश और (अग्नये) विद्वान् के लिये है, उन (त्वा) आप की हम लोग प्रार्थना करते हैं, वैसे तुम भी चेष्टा करो॥९॥

    भावार्थ - सब मनुष्यों को चाहिये कि वेदवेत्ता विद्वानों से सदा विद्याप्राप्ति की प्रार्थना किया करें, जिससे वे सब मनुष्य महत्त्व को प्राप्त होवें॥९॥

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