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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 4
    ऋषिः - रम्याक्षी ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - स्वराड् जगती स्वरः - निषादः
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    इन्द्र॒ गोम॑न्नि॒हा या॑हि॒ पिबा॒ सोम॑ꣳ शतक्रतो। वि॒द्यद्भि॒र्ग्राव॑भिः सु॒तम्।उ॒प॒या॒मगृ॑हीतो॒ऽसीन्द्रा॑य त्वा॒ गोम॑तऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा॒ गोम॑ते॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑। गोम॒न्निति॒ गोऽम॑न्। इ॒ह। आ। या॒हि॒। पिब॑। सोम॑म्। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। वि॒द्यद्भि॒रिति॒ वि॒द्यत्ऽभिः॑। ग्राव॑भि॒रिति॒ ग्राव॑ऽभिः। सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। इन्द्रा॑य। त्वा॒। गोम॑त॒ इति॒ गोऽम॑ते। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। इन्द्रा॑य। त्वा॒। गोम॑त इति॒ गोऽम॑ते ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र गोमन्निहायाहि पिबा सोमँ शतक्रतो । विद्यद्भिर्ग्रावभिः सुतम् । उपयामगृहीतो सीन्द्राय त्वा गोमतऽएष ते योनिरिन्द्राय त्वा गोमते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। गोामन्निति गोऽमन्। इह। आ। याहि। पिब। सोमम्। शतक्रतो इति शतऽक्रतो। विद्यद्भिरितिः विद्यत्ऽभिः। ग्रावभिरिति ग्रावऽभिः। सुतम्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। इन्द्राय। त्वा। गोमत इति गोऽमते। एषः। ते। योनिः। इन्द्राय। त्वा। गोमत इति गोऽमते॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -
    हे (शतक्रतो) जिस की सैकड़ों प्रकार की बुद्धि और (गोमन्) प्रशंसित वाणी है सो ऐसे हे (इन्द्र) विद्वन् पुरुष! आप (आ, याहि) आइये (इह) इस संसार में (विद्यद्भिः) विद्यमान (ग्रावभिः) मेघों से (सुतम्) उत्पन्न हुए (सोमम्) सोमवल्ली आदि ओषधियों के रस को (पिब) पियो, जिससे आप (उपयामगृहीतः) यम-नियमों से इन्द्रियों को ग्रहण किये अर्थात् इन्द्रियों को जीते हुए (असि) हो, इसलिए (गोमते) प्रशस्त पृथिवी के राज्य से युक्त पुरुष के लिये और (इन्द्राय) उत्तम ऐश्वर्य के लिये (त्वा) आप को और जिन (ते) आप का (एषः) यह (योनिः) निमित्त है उस (गोमते) प्रशंसित वाणी और (इन्द्राय) प्रशंसित ऐश्वर्य से युक्त पुरुष के लिये (त्वा) आप का हम लोग सत्कार करते हैं॥४॥

    भावार्थ - जो वैद्यकशास्त्र विद्या से सिद्ध और मेघों से उत्पन्न हुई औषधियों का सेवन और योगाभ्यास करते हैं, वे सुख तथा ऐश्वर्य्ययुक्त होते हैं॥४॥

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