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यजुर्वेद अध्याय - 39

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  • यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 8
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - अग्न्यादयो लिङगोक्ता देवताः छन्दः - निचृदत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    अ॒ग्निꣳ हृद॑येना॒शनि॑ꣳहृदया॒ग्रेण॑ पशु॒पतिं॑ कृत्स्न॒हृद॑येन भ॒वं य॒क्ना। श॒र्वं मत॑स्नाभ्या॒मीशा॑नं म॒न्युना॑ महादे॒वम॑न्तः पर्श॒व्येनो॒ग्रं दे॒वं व॑नि॒ष्ठुना॑ वसिष्ठ॒हनुः॒शिङ्गी॑नि को॒श्याभ्या॑म्॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम्। हृद॑येन। अ॒शानि॑म्। हृ॒द॒या॒ग्रेणेति॑ हृदयऽअ॒ग्रेण॑। प॒शु॒पति॒मिति॑ पशु॒ऽपति॑म्। कृ॒त्स्न॒हृद॑ये॒नेति॑ कृत्स्न॒ऽहृद॑येन। भ॒वम्। य॒क्ना ॥ श॒र्वम्। मत॑स्नाभ्याम्। ईशा॑नम्। म॒न्युना॑। म॒हा॒दे॒वमिति॑ महाऽदे॒वम्। अ॒न्तः॒ऽप॒र्श॒व्येन॑। उ॒ग्रम्। दे॒वम्। व॒नि॒ष्ठुना॑। व॒सि॒ष्ठ॒हनु॒रिति॑ वसिष्ठ॒ऽहनुः॑। शिङ्गी॑नि। को॒श्याभ्या॑म् ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निँ हृदयेनाशनिँ हृदयाग्रेण पशुपतिङ्कृत्स्नहृदयेन भवँयक्ना । शर्वम्मतस्नाभ्यामीशानम्मन्युना महादेवमन्तःपर्शव्येनोग्रन्देवँवनिष्ठुना वसिष्ठहनुः शिङ्गीनि कोश्याभ्याम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम्। हृदयेन। अशानिम्। हृदयाग्रेणेति हृदयऽअग्रेण। पशुपतिमिति पशुऽपतिम्। कृत्स्नहृदयेनेति कृत्स्नऽहृदयेन। भवम्। यक्ना॥ शर्वम्। मतस्नाभ्याम्। ईशानम्। मन्युना। महादेवमिति महाऽदेवम्। अन्तःऽपर्शव्येन। उग्रम्। देवम्। वनिष्ठुना। वसिष्ठहनुरिति वसिष्ठऽहनुः। शिङ्गीनि। कोश्याभ्याम्॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 39; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जो वे मरे हुए जीव (हृदयेन) हृदयरूप अवयव से (अग्निम्) अग्नि को (हृदयाग्रेण) हृदय के ऊपरले भाग से (अशनिम्) बिजुली को (कृत्स्नहृदयेन) संपूर्ण हृदय के अवयवों से (पशुपतिम्) पशुओं के रक्षक जगत् धारणकर्त्ता सबके जीवनहेतु परमेश्वर को (यक्ना) यकृतरूप शरीर के अवयवों से (भवम्) सर्वत्र होनेवाले ईश्वर को (मतस्नाभ्याम्) हृदय के इधर-उधर के अवयवों से (शर्वम्) विज्ञानयुक्त ईश्वर को (मन्युना) दुष्टाचारी और पाप के प्रति वर्त्तमान क्रोध से (ईशानम्) सब जगत् के स्वामी ईश्वर को (अन्तःपर्शव्येन) भीतरली पसुरियों के अवयवों में हुए विज्ञान से (महादेवम्) महादेव (उग्रम् देवम्) तीक्ष्ण स्वभाववाले प्रकाशमान ईश्वर को (वनिष्ठुना) आँत विशेष से (वसिष्ठहनुः) अत्यन्त वास के हेतु राजा के तुल्य ठोडीवाले जन को (कोश्याभ्याम्) पेट में हुए दो मांसपिण्डों से (शिङ्गीनि) जानने वा प्राप्त होने योग्य वस्तुओं को प्राप्त होते हैं, ऐसा तुम लोग जानो॥८॥

    भावार्थ - जो मनुष्य शरीर के सब अङ्गों से धर्माचरण, विद्याग्रहण, सत्सङ्ग और जगदीश्वर की उपासना करते हैं, वे वर्त्तमान और भविष्यत् जन्मों में सुखों को प्राप्त होते हैं॥८॥

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