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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 46
    ऋषिः - त्रित ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - ब्राह्मी बृहती छन्द स्वरः - मध्यमः
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    प्रैतु॑ वा॒जी कनि॑क्रद॒न्नान॑द॒द्रास॑भः॒ पत्वा॑। भर॑न्न॒ग्निं पु॑री॒ष्यं मा पा॒द्यायु॑षः पु॒रा। वृषा॒ग्निं वृष॑णं॒ भर॑न्न॒पां गर्भ॑ꣳ समु॒द्रिय॑म्। अग्न॒ऽआया॑हि वी॒तये॑॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। ए॒तु॒। वा॒जी। कनि॑क्रदत्। नान॑दत्। रास॑भः। पत्वा॑। भर॑न्। अ॒ग्निम्। पु॒री॒ष्य᳕म्। मा। पा॒दि॒। आयु॑षः। पु॒रा। वृ॒षा॑। अ॒ग्निम्। वृष॑णम्। भर॑न्। अ॒पाम्। गर्भ॑म्। स॒मु॒द्रिय॑म्। अग्ने॑। आ। या॒हि॒। वी॒तये॑ ॥४६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रैतु वाजी कनिक्रदन्नानदद्रासभः पत्वा । भरन्नग्निम्पुरीष्यम्मा पाद्यायुषः पुरा । वृषाग्निँवृषणम्भरन्नपाङ्गर्भँ समुद्रियम् । अग्नऽआयाहि वीतये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। एतु। वाजी। कनिक्रदत्। नानदत्। रासभः। पत्वा। भरन्। अग्निम्। पुरीष्यम्। मा। पादि। आयुषः। पुरा। वृषा। अग्निम्। वृषणम्। भरन्। अपाम्। गर्भम्। समुद्रियम्। अग्ने। आ। याहि। वीतये॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 46
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    Meaning -
    O noble son, like the fast moving, neighing, running, strong horse, die not ere thy time. Utilising electricity for thy safety, waste not thy energy. Just as the powerful, adorable sun takes away waters from the sea, and causes rain, so shouldst thou come hither for bestowing happiness.

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