Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शिवसङ्कल्प ऋषिः देवता - मनो देवता छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    7

    यत्प्र॒ज्ञान॑मु॒त चेतो॒ धृति॑श्च॒ यज्ज्योति॑र॒न्तर॒मृतं॑ प्र॒जासु॑।यस्मा॒न्नऽऋ॒ते किं च॒न कर्म॑ क्रि॒यते॒ तन्मे॒ मनः॑ शि॒वस॑ङ्कल्पमस्तु॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। प्र॒ज्ञान॒मिति॑ प्र॒ऽज्ञान॑म्। उ॒त। चेतः॑। धृतिः॑। च॒। यत्। ज्योतिः॑। अ॒न्तः। अ॒मृत॑म्। प्र॒जास्विति॑ प्र॒ऽजासु॑ ॥ यस्मा॑त्। न। ऋ॒ते। किम्। च॒न। कर्म॑। क्रि॒यते॑। तत्। मे॒। मनः॑। शि॒वस॑ङ्कल्प॒मिति॑ शि॒वऽस॑ङ्कल्पम्। अ॒स्तु ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतम्प्रजासु। यस्मान्नऽऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। प्रज्ञानमिति प्रऽज्ञानम्। उत। चेतः। धृतिः। च। यत्। ज्योतिः। अन्तः। अमृतम्। प्रजास्विति प्रऽजासु॥ यस्मात्। न। ऋते। किम्। चन। कर्म। क्रियते। तत्। मे। मनः। शिवसङ्कल्पमिति शिवऽसङ्कल्पम्। अस्तु॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    Meaning -
    That which is wisdom, intellect, and firmness, immortal light which creatures have within them. That without which men can do no single action, may that, my mind, hanker after God and be moved by noble resolve.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top