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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 11
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषयः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराट् ब्राह्मी अनुष्टुप्,आर्षी उष्णिक् स्वरः - गान्धारः, ऋषभः
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    व्र॒तं कृ॑णुता॒ग्निर्ब्रह्मा॒ग्निर्य॒ज्ञो वन॒स्पति॑र्य॒ज्ञियः॑। दैवीं॒ धियं॑ मनामहे सुमृडी॒काम॒भिष्ट॑ये वर्चो॒धां य॒ज्ञवा॑हसꣳ सुती॒र्था नो॑ऽअस॒द्वशे॑। ये दे॒वा मनो॑जाता मनो॒युजो॒ दक्ष॑क्रतव॒स्ते नो॒ऽवन्तु॒ ते नः॑ पान्तु॒ तेभ्यः॒ स्वाहा॑॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व्रतम्। कृ॒णु॒त॒। अ॒ग्निः। ब्रह्म॑। अ॒ग्निः। य॒ज्ञः। वन॒स्पतिः॑। य॒ज्ञियः॑। दैवी॑म्। धिय॑म्। म॒ना॒म॒हे॒। सु॒मृ॒डी॒कामिति॑ सुऽमृडी॒काम्। अ॒भिष्ट॑ये। व॒र्चो॒धामिति॑ वर्चः॒ऽधाम्। य॒ज्ञवा॑हस॒मिति॑ य॒ज्ञऽवा॑हसम्। सु॒ती॒र्थेति॑ सु॒ऽती॒र्था। नः॒। अ॒स॒त्। वशे॑। ये। दे॒वाः। मनो॑जाता॒ इति॒ मनः॑ऽजाताः। म॒नो॒यु॒ज॒ इति॑ मनः॒ऽयुजः॑। दक्ष॑ऽक्रतव॒ इति॒ दक्ष॑ऽक्रतवः। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। ते। नः॒। पा॒न्तु॒। तेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्रतङ्कृणुत व्रतङ्कृणुताग्निर्ब्रह्माग्निर्यज्ञो वनस्पतिर्यज्ञियः दैवीन्धियम्मनामहे सुमृडीकामभिष्टये वर्चाधाँ यज्ञवाहसँ सुतीर्था नो असद्वशे । ये देवा मनोजाता मनोयुजो दक्षक्रतवस्ते नो वन्तु ते नः पान्तु तेभः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    व्रतम्। कृणुत। अग्निः। ब्रह्म। अग्निः। यज्ञः। वनस्पतिः। यज्ञियः। दैवीम्। धियम्। मनामहे। सुमृडीकामिति सुऽमृडीकाम्। अभिष्टये। वर्चोधामिति वर्चःऽधाम्। यज्ञवाहसमिति यज्ञऽवाहसम्। सुतीर्थेति सुऽतीर्था। नः। असत्। वशे। ये। देवाः। मनोजाता इति मनःऽजाताः। मनोयुज इति मनःऽयुजः। दक्षऽक्रतव इति दक्षऽक्रतवः। ते। नः। अवन्तु। ते। नः। पान्तु। तेभ्यः। स्वाहा॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 11
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    Meaning -
    Take a vow. God is Agni. Yajna is Agni. God, the Guardian of our soul, is fit for worship. For the attainment of an ideal, I long for divine, pleasant, radiant intelligence that unites me with God. May that intelligence, that makes me happily cross the ocean of this mundane existence, be within my control. May the philosophic, meditative and energetic sages urge us on to noble deeds, may they be our protectors. We invoke them from the inmost recesses of our heart.

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