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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1201
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
प्र꣢꣫ वाच꣣मि꣡न्दु꣢रिष्यति समु꣣द्र꣡स्याधि꣢꣯ वि꣣ष्ट꣡पि꣢ । जि꣢न्व꣣न्को꣡शं꣢ मधु꣣श्चु꣡त꣢म् ॥१२०१॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । इ꣡न्दुः꣢꣯ । इ꣣ष्यति । समुद्र꣡स्य꣢ । स꣣म् । उद्र꣡स्य꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । वि꣣ष्ट꣡पि꣢ । जि꣡न्व꣢꣯न् । को꣡श꣢꣯म् । म꣣धुश्चु꣡त꣢म् । म꣣धु । श्चु꣡त꣢꣯म् ॥१२०१॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वाचमिन्दुरिष्यति समुद्रस्याधि विष्टपि । जिन्वन्कोशं मधुश्चुतम् ॥१२०१॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वाचम् । इन्दुः । इष्यति । समुद्रस्य । सम् । उद्रस्य । अधि । विष्टपि । जिन्वन् । कोशम् । मधुश्चुतम् । मधु । श्चुतम् ॥१२०१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1201
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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विषय - अब परमात्मा की कृपा का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(इन्दुः) रस का भण्डार परमात्मा अपने (मधुश्चुतम्) मधुस्रावी (कोशम्) आनन्द-रस के कोश को (समुद्रस्य) जीवात्मरूप समुद्र के (विष्टपि अधि) धरातल पर (जिन्वन्) प्रेरित करता हुआ (वाचम्) उपदेशरूप वाणी को (प्र इष्यति) देता है ॥६॥ यहाँ शब्दशक्तिमूलक ध्वनि से यह ध्वनित होता है कि जैसे चन्द्रमा (इन्दु) समुद्र के धरातल पर अपने चाँदनीरूप मधुस्रावी कोश को प्रेरित करता है ॥६॥
भावार्थ - उपासकों को जगदीश्वर निरन्तर आनन्द-रस की धाराओं से सींचता रहता है और उन्हें दिव्य सन्देश देता रहता है ॥६॥
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