Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1202
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
नि꣡त्य꣢स्तोत्रो꣣ व꣢न꣣स्प꣡ति꣢र्धे꣣ना꣢म꣣न्तः꣡ स꣢ब꣣र्दु꣡घा꣢म् । हि꣣न्वानो꣡ मानु꣢꣯षा यु꣣जा꣢ ॥१२०२॥
स्वर सहित पद पाठनि꣡त्य꣢꣯स्तोत्रः । नि꣡त्य꣢꣯ । स्तो꣣त्रः । व꣢न꣣स्प꣡तिः꣢ । धे꣣ना꣢म् । अ꣣न्त꣡रिति꣢ । स꣣बर्दु꣡घा꣢म् । स꣣बः । दु꣡घा꣢꣯म् । हि꣡न्वानः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षा । यु꣣जा꣢ ॥१२०२॥
स्वर रहित मन्त्र
नित्यस्तोत्रो वनस्पतिर्धेनामन्तः सबर्दुघाम् । हिन्वानो मानुषा युजा ॥१२०२॥
स्वर रहित पद पाठ
नित्यस्तोत्रः । नित्य । स्तोत्रः । वनस्पतिः । धेनाम् । अन्तरिति । सबर्दुघाम् । सबः । दुघाम् । हिन्वानः । मानुषा । युजा ॥१२०२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1202
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
Acknowledgment
विषय - अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि परमात्मा स्तोता का कैसे उपकार करता है।
पदार्थ -
(नित्यस्तोत्रः) सन्ध्योपासनारूप नित्यकर्म द्वारा स्तुति करने योग्य, (वनस्पतिः) तेजों का अधिपति सोम परमात्मा, (मानुषा युजा) मनुष्य स्त्री-पुरुषों के (अन्तः) अन्तःकरण में (सबर्दुघाम्) आनन्द-रस को दुहनेवाली (धेनाम्) दिव्यवाणी को (हिन्वानः) प्रेरित करता रहता है ॥७॥ यहाँ ‘दुघाम्’ कहने से धेना (वाणी) में गोत्व का आरोप व्यङ्ग्य है ॥७॥
भावार्थ - परमेश्वर की उपासना का यही लाभ है कि दिव्य आनन्द और शुभकर्मों में उत्साह प्राप्त होता है ॥७॥
इस भाष्य को एडिट करें