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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1399
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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अ꣣स्य꣢ प्रे꣣षा꣢ हे꣣म꣡ना꣢ पू꣣य꣡मा꣢नो दे꣣वो꣢ दे꣣वे꣢भिः꣢ स꣡म꣢पृक्त꣣ र꣡स꣢म् । सु꣣तः꣢ प꣣वि꣢त्रं꣣ प꣡र्ये꣢ति꣣ रे꣡भ꣢न्मि꣣ते꣢व꣣ स꣡द्म꣢ पशु꣣म꣢न्ति꣣ हो꣡ता꣢ ॥१३९९॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣स्य꣢ । प्रे꣣षा꣢ । हे꣣म꣡ना꣢ । पू꣣य꣢मा꣢नः । दे꣣वः꣢ । दे꣣वे꣡भिः꣢ । सम् । अ꣣पृक्त । र꣡स꣢꣯म् । सु꣣तः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢म् । प꣡रि꣢꣯ । ए꣣ति । रे꣡भ꣢꣯न् । मि꣣ता꣢ । इ꣣व । स꣡द्म꣢꣯ । प꣣शुम꣡न्ति꣢ । हो꣡ता꣢꣯ ॥१३९९॥


स्वर रहित मन्त्र

अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभिः समपृक्त रसम् । सुतः पवित्रं पर्येति रेभन्मितेव सद्म पशुमन्ति होता ॥१३९९॥


स्वर रहित पद पाठ

अस्य । प्रेषा । हेमना । पूयमानः । देवः । देवेभिः । सम् । अपृक्त । रसम् । सुतः । पवित्रम् । परि । एति । रेभन् । मिता । इव । सद्म । पशुमन्ति । होता ॥१३९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1399
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अस्य) इस पवमान सोम अर्थात् पवित्रतादायक अन्तर्यामी जगदीश्वर की (प्रेषा) प्रेरणा से और (हेमना) ज्योति से (पूयमानः) पवित्र किया जाता हुआ (देवः) प्रकाशक वा तापमय सूर्य (देवेभिः) प्रकाशक वा सन्तापक किरणों द्वारा (रसम्) भूमि के जल से (समपृक्त) सम्पर्क करता है। (सुतः) भाप बनाकर ऊपर प्रेरित किया हुआ तथा मेघ के आकार को प्राप्त हुआ वह जल (रेभन्) विद्युद्गर्जना करता हुआ (पवित्रम्) अन्तरिक्ष में (पर्येति) परिभ्रमण करता है, (इव) जैसे (होता) होता नामक ऋत्विज् (मिता) निर्माण किये हुए (पशुमन्ति) धेनुओं से युक्त (सद्म) गो-सदनों में, गोदुग्ध पाने के लिए (पर्येति) चक्कर काटा करता है ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - जो यह सूर्य अपने ताप से भूमि पर स्थित जल को भाप बनाकर अन्तरिक्ष में बादलों को रचता और बरसाता है, वह सब परमेश्वर की ही महिमा है ॥१॥

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